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________________ १८१ जैनधर्म और तांत्रिक साधना बुद्ध्या विनापि बिबुधार्चित-पादपीठ! स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्बमन्यः क इच्छति जनः सहसा गृहीतुम् ।।३।। बुट्यापिनापिविबुधार्चितपासीठ नमोभगमने काकी रमाला परमतवाथाबकापासार स्तोतुसमुघतमतिविंगतवपोऽहम् BLOG मन्यःकरछातजनःसहसाय S मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो परमोहिजिणाणं ।। मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सिद्धेभ्यो बुडेभ्यः सर्वसिद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा। प्रभाव-सर्वसिद्धियाँ प्राप्त होती है। RS - --- - عمهلهيلاهيلا वक्तुंगुणान् गुण-समुद्र-शशाङ्क-कान्तान्, कस्ते क्षमः सुरगुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या। कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्र, को वा तरीतु-मलमम्बुनिधिं भुजाभ्यां । १४ ।। - पगुमानगुप्लममुद्रशशाङ्ककान्तान् सों सी सी सी सी सी सों [हीमईएमोसबाहिर कावानरंतुमसमन्नुनिधि मुजाभ्यां ।। 先施流水龙山 नाममा मिसानजदयात्रा सैसों सौ से सासोंसों कस्तेक्षमाःसुरगुरुप्रतिमाऽपि या ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो सव्वोहिजिणाणं । मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं जलयात्रादेवताभ्यो नमः स्वाहा। प्रभाव-जाल में मछलियां नहीं फैसतीं। sian 接地选线带进法 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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