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________________ १८० यंत्रोपासना और जैनधर्म भक्तामर-प्रणतमौलि-मणि-प्रभाणामुद्योतकं दलित-पाप-तमोवितानम् । सम्यक्प्रणम्य जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।।१।। यन्त्र भक्तामर प्रपातमीलिमणिप्रभाएगालाईक गर्न मनाही . न्यही - मन्त्र ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो अरिहंताणं णमो जिणाणं ॐ ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय शौं शौं स्वाहा।। | मंत्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्र श्रीं क्लीं ब्लूं क्रौं ॐ ह्रीं नमः स्वाहा। प्रभाष-सारी विघ्न-बाधाएं दूर होती है। बालम्बनभवजलपतनाजनानाम॥१ का मुद्योतकं दवितपापतमोवितानमा CHAUNITION बिस NREL AIRLINE - - - यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय-तत्त्वोधादुभूत-बुद्धि-पटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तो त्रैर्जगत्रितय-चित्त-हरै-रुदारैः स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ।।२।। यन्त्र -- - यसंस्तुतः सफलयानयतसबोधा. किनकककककककककक ने-होश्रीमानमा. श्रीश्रीश्रीश्री मन्त्र स्तोप्ये किलाहमपितमयमंनिनेन्द्रम् २ ओहिनिएगणं सकलार्थसिद्धी कनकनबनर्निक कर्नुपर्नुनका दुद्भुतबुदिपभिः सुरतोक नायैः।। | MMME ऋद्धि -ॐ ह्रीं अहं णमो ओहिजिणाणं । मंत्र -ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लू नमः । प्रभाव-सारे रोग, शत्रु शान्त होते हैं तथा सिरदर्द दूर होता है। । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001796
Book TitleJain Dharma aur Tantrik Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Occult
File Size25 MB
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