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जैन धर्म और तांत्रिक साधना जैन परम्परा का यह प्रथम स्तोत्र है । जैनों का इसकी अलौकिक शक्ति में अटूट विश्वास है । वर्तमान युग में भी यह जीवन्त परम्परा है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी शुभकार्य के लिए प्रस्थान करने के पूर्व इस स्तोत्र को किसी मुनि आदि से सुनता है या स्वतः ही उसका पाठ करता है।
कालक्रम में इस प्रकार के लौकिक आकांक्षाओं की पूर्ति की कामना को लेकर अनेक स्तोत्र जैनपरम्परा में निर्मित हुए, जिनमें एक ओर भक्त प्रभु के गुणों का गुणगान करता है तो दूसरी ओर उनसे अपने लौकिक जीवन की विघ्नबाधाओं को दूर करने तथा भौतिक सुख सम्पत्ति प्रदान करने की कामना भी करता है । यद्यपि प्रभु से इस प्रकार लौकिक मंगल की कामना करना जैन धर्म की निवृत्तिमार्गी आध्यात्मिक जीवनदृष्टि के विपरीत है, फिर भी भक्तिमार्गीय एवं तांत्रिक परम्पराओं के प्रभाव से जैन स्तोत्रों में याचना का यह तत्त्व प्रविष्ट होता ही गया और भक्तहृदय वीतराग परमात्मा के सामने भी अपनी लौकिक आकांक्षाओं की पूर्ति की प्रार्थना करता रहा। लगभग ६ठी ७वीं शताब्दी के बाद से लेकर आज तक निष्काम आध्यात्मिक भक्तिपरक रचनाओं के साथ-साथ लौकिक प्रयोजनों को लेकर तांत्रिक साधना सम्बन्धी सकामभक्तिपरक स्तुतियों का भी निर्माण होता रहा है। इन रचनाओं को निम्न वर्गों में समाहित किया जा सकता है
नमस्कार मंत्र से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्र
१.
२. तीर्थंकरों से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्र
३. गणधरों, लब्धिधरों या सूरिमंत्र से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्र
४. सरस्वती ( श्रुतदेवी) से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्र
शासन रक्षक देवी-देवता से सम्बन्धित तांत्रिक स्तोत्र ।
नमस्कार मंत्र से सम्बन्धित स्तोत्रों में मानतुंग विरचित ३२ गाथाओं का नमस्कारमन्त्रस्तव महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। यह कहना तो कठिन है कि यह नमस्कारमन्त्रस्तव भक्तामर के कर्ता मानतुंगाचार्य की ही रचना है, फिर भी तांत्रिक साधना में नमस्कार मंत्र का प्रयोग किस प्रकार हुआ है, इसे अभिव्यक्त करने वाली यह एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन प्राकृत रचना है ।
इसी क्रम में दूसरी महत्त्वपूर्ण रचना सिंहतिलकसूरि (तेरहवीं शती) कृत पंचपरमेष्ठिविद्यामन्त्रकल्प और लघुनमस्कारचक्र है। नवपद सम्बन्धी स्तोत्र भी नमस्कार मंत्र से सम्बन्धित स्तोत्रों में ही अन्तर्गर्भित किए जा सकते हैं । क्योंकि नमस्कार मंत्र के पांच पदों में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप-ये चार पद जोड़कर नवपद की आराधना की जाती है। ऐसे स्तोत्रों में अज्ञातकृत
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