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स्तोत्रपाठ, नामजप एवं मन्त्रजप जैनधर्म पर बृहद् हिन्दू परम्परा के प्रभाव को रेखांकित अवश्य करता है। इन पर्यायवाची नामों का तुलनात्मक अध्ययन दोनों के पारस्परिक प्रभाव को समझने में पर्याप्त उपयोगी होगा ।
मालाजप
नामस्मरण के क्रम में कायोत्सर्ग में नमस्कार मंत्र जपने की परम्परा तो नियुक्तिकाल अर्थात् ईसा की द्वितीय शती से मिलती है, किन्तु माला से जप करने की परम्परा कब प्रचलित हुई कहना कठिन है। फिर भी मध्यकाल से यह परम्परा चली आ रही है। जैन परम्परा में १०८ मनकों की माला विहित मानी गयी है, मनकों की इस संख्या को जैनों ने पंचपरमेष्ठि के १०८ गुणों से जोड़ा है। उनके अनुसार अरिहंत के बारह, सिद्ध के आठ, आचार्य के छत्तीस, उपाध्याय के पच्चीस और साधु के सत्ताईस गुण माने गये हैं, इस प्रकार पंचपरमेष्ठि के सम्पूर्ण गुणों की संख्या एक सौ आठ होती है और इसी आधार पर माला में भी १०८ मनके रखे जाते हैं । माला किस वस्तु की हो, ऐसा कोई स्पष्ट विधान जैन ग्रंथों में मुझे नहीं मिला। सामान्यतया मूंगा, मोती, स्फटिक आदि रत्नों की, सोने, चांदी आदि धातुओं की एवं तुलसी, रुद्राक्ष, चन्दन आदि काष्ठ वस्तुओं की एवं सूत के मनकों की मालाएं बनती हैं। परवर्ती तांत्रिक ग्रंथों में इन विविध प्रकार की मालाओं से जप करने के विविध फल की चर्चा की गई है। जैन साधु-साध्वी सूत या काष्ठ के मनकों की माला रखते हैं। धातुओं मणि, मोती आदि बहुमूल्य रत्नों की माला जैन साधुओं के दिए वर्ज्य है ।
आचार्य देशभूषणजी ने णमोकारमंत्र नामक कृति में और कुंथुसागर जी ने लघुविद्यानुवाद में माला विधान सम्बन्धी विवरण प्रस्तुत किया है, किन्तु उसका मूल आगमिक आधार क्या है? यह हम नहीं जानते हैं । उनके अनुसार दुष्ट या व्यन्तर देवों के उपद्रव शान्त करने हेतु, किसी का स्तम्भन करने के लिए, रोगशांति या पुत्रप्राप्ति के लिए मोती की माला या कमल के बीजों की माला से जप करना चाहिए। शत्रु उच्चाटन के लिए रुद्राक्ष की माला, सर्व कार्य सिद्धि के लिए पंच वर्ण के पुष्पों से जप करना चाहिए। आँवले के बीज की माला से जप करने पर सहस्रगुना फल मिलता है। लौंग की माला से पाँचहजारगुना, स्फटिक की माला से दसहजारगुना, मोतियों की माला से लाखगुना, कमल बीज की माला से दसलाखगुना और सोने की माला से जप करने से करोड़गुना फल मिलता है। मेरी दृष्टि में जप में माला की अपेक्षा भावों की शुद्धता ही प्रमुख तत्त्व है । मात्र वस्तु विशेष की माला जपने से विशिष्ट फल की प्राप्ति सम्भव नहीं मानी जा सकती है। तन्त्र साधना में माला किस
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