________________
१४३
मंत्र साधना और जैनधर्म स्तम्भन संबंधी मंत्र अग्नि स्तम्भन मंत्र (ब) ॐ थम्भेइ जलज्जलणं चिंतियमित्तेण पंचणमयारो।
अरिमारिचोरराउलघोरुवसग्गं विणासेइ ।।स्वाहा।।
(जैन परम्परा में निर्मित) (ब) अग्निस्तम्भिनि! पञ्चदिव्योत्तरणि! श्रेयस्करि! ज्वल-ज्वल प्रज्वल प्रज्वल सर्वकामार्थसाधिनि! स्वाहा ।। ॐ अनलपिङ्गलोर्ध्वकेशिनि! महादिव्याधिपतये स्वाहा ।।२।। अग्निस्तम्भनयन्त्रम्।।
(अन्य परम्परा से गृहीत) दुष्टजन स्तम्भन मंत्र (अ) ॐ नमो भयवदो रिसहस्स तस्स पडिनिमित्तेण चरण पणत्ति इंदेण भणामइ यमेण उग्घाडिया जीहा कंठोट्ठमुहतालुया खीलिया जो मं भसइ जो मं हसइ दुट्ठदिट्टीए वज्जसंखिलाए देवदत्तस्स मणं हिययं कोहं जीहा खीलिया सेल खिलाए लललल ठठठठ।।
(जैन परम्परा में निर्मित)
(ब) ॐ वार्तालि! वराहि! वराहमुखि! जम्भे! जम्भिनि! स्तम्भे! स्तम्भिनि! अन्धे! अन्धिनि! रुन्धे! रुन्धिनि! सर्वदुष्ट प्रदुष्टानां क्रोधं लिलि मतिं लिलि गति लिलि जिहां लिलि ॐ ठः ठः ठः।
(अन्य परम्परा से गृहीत) शत्रुसेना स्तम्भन सम्बन्धी मंत्र ॐ हीं भैरवरूपधारिणि! चण्डशूलिनि! प्रतिपक्षसैन्यं चूर्णय चूर्णय घूमय घूमय भेदय भेदय ग्रस ग्रस पच पच खदय खादय मारय मारय ॐ फट् स्वाहा।।
ज्ञातव्य है कि इस मंत्र में न तो इष्ट देवता के रूप में पंचपरमेष्ठि या जिन का उल्लेख है और न यह प्राकृत भाषा से प्रभावित है अतः यह मंत्र अन्य परम्परा से गृहीत है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org