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११८ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना लोगस्स सम्बन्धीमन्त्र
ऐं ओम् ह्रीं एँ लोगस्स उज्जोयगरे, धम्मतित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसं पि केवली-मम मनस्तुष्टिं कुरु-कुरु ॐ स्वाहा।
विधि- इस मन्त्र को पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्योदय के समय खड़े होकर 'काउस्सग्ग' करके १०८ बार मौन सहित जपें। दिन में एक बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य से रहें, भूमि पर या पट्टे पर सोएँ। इस प्रकार निरन्तर चौदह दिन तक जप करने से मान-सम्मान, धन-सम्पत्ति प्राप्त होती है और सब प्रकार का संकट दूर होता है।
- (इति प्रथम मण्डल) ॐ क्रां क्रीं ह्रां ह्रीं उसभमजियं च वंदे, संभवमभिनंदणं च सुमइं च। पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे स्वाहा!
विधि- उत्तर दिशा की ओर मुख रख कर पद्मासन लगा कर उक्त मंत्र को १०८ बार जपें। सोमवार से ७ दिन तक मौन रखें, एक बार भोजन करें, ब्रह्मचर्य पालें, भूमि पर शयन करें, झूठ न बोलें, सफेद वस्तु-चावल आदि का भोजन करें। ऐसा करने से गृह-कलह और राज-काज के झगड़े दूर होते हैं। सब प्रकार से आनन्द रहता है।
___- (इति द्वितीय मण्डल) ॐ एँ ही झू झी सुविहिं च पुष्फदंतं सीयल सिज्जंस वासुपुज्जं च । विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि स्वाहा!
विधि- इस मन्त्र को लाल रंग की माला से १०८ बार जपें, ब्रह्मचर्य पालें और भूमि पर शयन करें। २१ दिन तक जपते रहने से शत्रु का भय दूर होता है, संग्राम में या मुकद्दमे में जय होती है।
- (इति तृतीय मण्डल) - ॐ ह्रीं श्रीं कुंथु अरं च मल्लिं वंदे मुणिसुव्वयं नमि जिणं च। वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च, मम मनोवाञ्छित पूरय-पूरय ही स्वाहा।
विधि- इस मन्त्र का ११,००० जप पीले रंग की माला से पूर्वदिशा की तरफ मुख करके करना चाहिए । भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है एवं परिवार की शोभा बढ़ती है। लिख कर गलें में बाँधने से ज्वर-पीड़ा भी दूर होती है।
- (इति चतुर्थ मण्डल)
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