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मंत्र साधना और जैनधर्म चारणेहिं विज्जाहरेहिं चउत्थभत्तिएहिं 'छट्ठभत्तिएहिं अट्ठभत्तिएहिं एवं-दसम-दुवालस-चोद्दस-सोलस-अद्धमास-मास-दोमास-चउमासपंचमास-छम्मासभत्तिएहिं उक्खित्तचरएहिं निक्खित्तचरएहिं अंतचरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदाणचरएहिं अण्णइलाएहिं मोणचरएहिं संसट्ठकप्पिएहिं तज्जायसंसट्ठकप्पिएहिं उवनिहिएहिं सुद्धसणिएहिं संखादत्तिएहिं दिठ्ठलाभिएहिं अदिट्ठलाभिएहिं पुट्ठलाभिएहिं आयंबिलिएहिं पुरिमड्डिएहिं एक्कासणिएहिं निवि-तिएहिं भिण्णपिंडवाइएहिं परिमियपिंडवाइएहिं अंताहारेहिं पंताहारेहिं अरसाहारेहिं विरसाहारेहिं लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहिं, पंतजीवीहिं लूहजीवीहिं तुच्छजीवीहिं उवसंतजीवीहिं पसंतजीविहिं विवित्तजीवीहिं अक्खीरमहुसप्पिएहिं अमज्जमसासिएहिं ठाणाइएहिं पडिमट्ठाईहिं ठाणुक्कडिएहिं वीरासणिएहिं णेसज्जिएहिं डंडाइएहिं लगंडसाईहिं एगपासगेहिं आयावएहिं अप्पाउएहिं अणिठुभएहिं अकंडूयएहिं धुतकेसमंसु-लोमनखेहिं सव्वगायपडिकम्मविप्पमुक्केहिं समणुचिण्णा।
सुयधरविदितत्थकायबुद्धीहिं। धीरमतिबुद्धिणो य जे ते आसीविसउग्गतेयकप्पा निच्छय–ववसाय-पज्जत्तकयमतीया णिच्वं सज्झायज्झाणअणुबद्धधम्मज्झाणा पंचमहब्बयचरित्तजुत्ता समिता समितीसु समितपावा छबिहजगजीववच्छला निच्चमप्पमत्ता, एएहिं अण्णेहिं य जा सा अणुपालिया भगवती।।
(प्रश्नव्याकरणसूत्र २/१/१०६) अर्थात् यह भगवती अहिंसा वह है जोअपरिमित-अनन्त केवलज्ञान-दर्शन को धारण करने वाले, शीलरूप गुण, विनय, तप और संयम के नायक-इन्हें चरम सीमा तक पहुँचाने वाले, तीर्थ की संस्थापना करने वाले धर्मचक्र प्रवर्तक, जगत् के समस्त जीवों के प्रति वात्सल्य धारण करने वाले, त्रिलोकपूजित जिनवरों (जिनचन्द्रों) द्वारा अपने केवलज्ञान-दर्शन द्वारा सम्यक् रूप में स्वरूप, कारण और कार्य के दृष्टिकोण से निश्चित की गई है।
विशिष्ट अवधिज्ञानियों द्वारा विज्ञात की गई है-ज्ञपरिज्ञा से जानी गई और प्रत्याख्यानपरिज्ञा से सेवन की गई है। ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा देखी-परखी गई है। विपुलमति-मनःपर्यवज्ञानियों द्वारा ज्ञात की गई है। चतुर्दश पूर्वश्रुत के धारक मुनियों ने इसका अध्ययन किया है। विक्रियालब्धि के धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है। आभिनिबोधिक-मतिज्ञानियों ने, श्रुतज्ञानियों ने, अवधिज्ञानियों ने, मनःपर्यवज्ञानियों ने, केवलज्ञानियों ने, आम\षधिलब्धि के धारकों ने, श्लेष्मौषधिलब्धिधारकों ने, जल्लौषधिलब्धिधारकों ने, विपुडौषधिलब्धिधारकों ने, सर्वौषधिलब्धिबीजबुद्धि, कोष्ठबुद्धि,- पदानुसारिबुद्धि आदि लब्धि के
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