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११६ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना (२१) ॐ नमि नमि नामिणि नमामिणि ठः ठः स्वाहा। श्रृंगार करके एवं अच्छे वस्त्रों को पहनकर इस विद्या से १०७ या १०८ बार मंत्रित पुष्प जिसे भी दिया जाता है, वह वश में हो जाता है।
(२२) ॐ रहे रहावत्ते आवत्ते वत्ते अरिट्ठनेमि ठः ठ: स्वाहा।
इस विद्या से १०८ बार अभिमंत्रित करके जिस घोड़े, हाथी, रथ पर आरूढ़ होकर यात्रा की जाती है वह वाहन और दुश्मन दोनों ही वश में हो जाते हैं। अरिष्टनेमि सम्बन्धी विशिष्टविद्या
ॐ नमो भगवओ अरिट्ठनेमिसामिस्स अरिटेणं बंधेणं बंधामि भूयाणं जक्खाणं रक्खसाणं विंतराणं चोराणं चोरिआणं साइणीणं वालाणं दाढीणं नहीणं वाहीणं महोरगाणं अन्नेवि जक्खे विमज्झदुट्ठा संभवंति तेसिं सव्वेसिं मणं बंधामि दिढिं बंधामि यः यः यः यः ठः ठः ठः ठः हुं फट् स्वाहा।
श्वेत पुष्पों से इस विद्या का १०००० बार जप करने पर उस साधक के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। (२३) ॐ उग्गे महाउग्गे उग्गजसे पासे पासे सुपासे पासमालिणि ठः ठः स्वाहा।
इस विद्या को पढ़कर देश, नगर, ग्राम अथवा भंडार में धूप तथा बलि अर्पित करने पर रोगियों के रोग शान्त हो जाते हैं और निर्धनों को धन की प्राप्ति हो जाती है। पार्श्व सम्बन्धी विशिष्टविद्या
ॐ उग्गे उग्गे महाउग्गे गामपासे नगरपासे पासे सुपासे पासमालिणि ठः ठः स्वाहा।
पार्श्व सम्बन्धी इस विशिष्ट विद्या से १००० पुष्पों अथवा अक्षतों से पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा का पूजन करने पर यह विद्या सिद्ध होती है। इस विद्या के सिद्ध होने पर कायोत्सर्ग में इस विद्या का जाप करते रहने से प्रत्येक कार्य का शुभाशुभ फलादेश प्राप्त होता रहता है। (२४) ॐ नमो भगवओ महइ वद्धमाणसामिस्स, सिज्झउ मे भगवई महइ महाविज्जा। इस विद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप गुरु जिस भी शिष्य के मस्तक पर डाल देता
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