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७३ पूजा विधान और धार्मिक अनुष्ठान पूजा विधानों के अतिरिक्त अन्य जैन अनुष्ठानों में श्वेताम्बर परम्परा में पर्युषणपर्व, नवपदओली, बीस स्थानक की पूजा आदि सामूहिक रूप से मनाये जानेवाले जैन अनुष्ठान हैं। उपधान नामक तप अनुष्ठान भी श्वेताम्बर परम्परा में बहुप्रचलित है। आगमों के अध्ययन एवं आचार्य आदि पदों पर प्रतिष्ठित होने के लिए भी श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ में मुनियों को कुछ अनुष्ठान करने होते हैं जिनको सामान्यतया 'योगोद्वहन एवं सूरिमंत्र की साधना कहते हैं। विधिमार्गप्रपा में दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, निशीथसूत्र, भगवतीसूत्र आदि आगमों के अध्ययन सम्बन्धी अनुष्ठानों एवं कर्मकाण्डों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है।
दिगम्बर परम्परा में प्रमुख अनुष्ठान या व्रत निम्न हैं- दशलक्षणव्रत, अष्टाहिकाव्रत, द्वारावलोकनव्रत, जिनमुखावलोकनव्रत, जिनपूजाव्रत, गुरुभक्ति एवं शास्त्रभक्तिव्रत, तपांजलिव्रत, मुक्तावलीव्रत, कनकावलिव्रत, एकावलिव्रत, द्विकावलिव्रत, रत्नावलीव्रत, मुकुटसप्तमीव्रत, सिंहनिष्क्रीडितव्रत, निर्दोषसप्तमीव्रत, अनन्तव्रत, षोडशकारणव्रत, ज्ञानपच्चीसीव्रत, चन्दनषष्ठीव्रत, रोहिणीव्रत, अक्षयनिधिव्रत, पंचपरमेष्ठिव्रत, सर्वार्थसिद्धिव्रत,धर्मचक्रव्रत, नवनिधिव्रत, कर्मचूरव्रत, सुखसम्पत्तिव्रत, इष्टासिद्धिकारकनिःशल्य अष्टमीव्रत आदि। इनके अतिरिक्त दिगम्बर परम्परा में पंचकल्याण बिम्बप्रतिष्ठा, वेदीप्रतिष्ठा एवं सिद्धचक्र विधान, इन्द्रध्वज विधान, समवसरण विधान, ढाई-द्वीप विधान, त्रिलोक विधान, बृहद्चारित्रशुद्धि विधान, महामस्तकाभिषेक आदि ऐसे प्रमुख अनुष्ठान हैं जो कि बृहद् स्तर पर मनाये जाते हैं। इनके अतिरिक्त पद्मावती आदि देवियों एवं विभिन्न यक्षों, क्षेत्रपालों-भैरवों आदि के भी पूजा विधान जैन परम्परा में प्रचलित है। जिन पर तन्त्र परम्परा का स्पष्ट प्रभाव है।
मन्दिरनिर्माण तथा जिनबिम्बप्रतिष्ठा के सम्बन्ध में जो भी अनेक जटिल विधि-विधानों की व्यवस्था जैनसंघ में आई है और इस सम्बन्ध में प्रतिष्ठाविधि, प्रतिष्ठातिलक या प्रतिष्ठाकल्प आदि अनेक ग्रंथों की रचना हुई है वे सभी हिन्दू तान्त्रिक परम्परा से प्रभावित हैं। वस्तुतः सम्पूर्ण जैन परम्परा में मृत और जीवित अनेक अनुष्ठानों पर किसी न किसी रूप में तन्त्र का प्रभाव है जिनका समग्र तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक विवरण तो किसी विशालकाय ग्रंथ में ही दिया जा सकता है।
अतः इस विवेचन को यही विराम देते हैं। आगे हम पूजा विधानों में विविध कलाओं के प्रवेश की एवं पूजा-अनुष्ठानों में प्रयुक्त मन्त्रों और यन्त्रों की चर्चा करेंगे।
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