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मंत्र साधना और जैनधर्म धर्मद्रुहो नाशनं च, करोत्युच्चाटनं तथा।। मुट्ठी बांधकर इस मन्त्र का शत्रु के प्रति जप करने पर यह मन्त्र, धर्मद्रोही का नाश करने वाला एवं उच्चाटन करने वाला होता है।
ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा प्रेतादिकान् नाशय नाशय ठः ठः ।
इदं मन्त्रं दयेकविंशवारजप्तं करोति च ।
भूत-प्रेतादिकवधं, संशयो न हि सांप्रतम् ।।
बयालीस बार जपा गया यह मंत्र भूत-प्रेत बाधा का नाश करता है इसमें कोई संदेह नहीं है। (४८) जाल मत्स्यानां निर्बन्धनमन्त्र
ॐ नमो अरिहंताणं' इत्यादिकृत्य 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं हुलु हुलु चुलु चुलु मुलु मुलु स्वाहा।
२१ जाप्यतो दत्तं जाले मत्स्याः नायान्ति ।। इस मंत्र का २१ बार जप करने पर जाल में मछलियाँ नहीं आतीं। (४६) त्रिभुवनस्वामिनीविद्या
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रीं अ सि आ उ सा चुलु चुलु हुलु हुलु चुलु चुलु इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा। त्रिभुवनस्वामिनीविद्येयं चतुर्विंशतिसहस्रजापात् सर्वसंपत् (करी) स्यात्। इस त्रिभुवन स्वामिनी विद्या को २४००० बार जपने से यह सर्वसम्पत्ति प्रदाता होती है। (५०) वादजयार्थ मन्त्र
"ॐ ह्रीं अ सि आ उ सा नमोऽहं वद वद वाग्वादिनी सत्यवादिनी वद वद मम वक्त्रे व्यक्तवाचा ह्रीं सत्यं ब्रूहि सत्यं ब्रूहि सत्यं वदास्खलितप्रचारं सदेव-मनुजासुरसदसि ह्रीं अर्ह अ सि आ उ सा नमः ।
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