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जल्लोसहिपत्ताणं, ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताणं स्वाहा ।
सूचना- इस मन्त्र की प्रतिदिन एक माला फेरने से सब प्रकार के रोगों की पीड़ा शान्त हो जाती है, रोगी का कष्ट कम हो जाता है ।
ग्रहपीड़ा - नाशक मन्त्र
जब सूर्य और मंगल की पीड़ा हो तो -ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं, चन्द्रमा और शुक्र की पीड़ा हो तो -ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, बुध की पीड़ा हो तो -ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं, गुरु- बृहस्पति की पीड़ा हो तो -ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, तथा शनि, राहु और केतु की पीड़ा हो तो - ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं मन्त्र का जप करना चाहिए । जितने दिनों तक ग्रह-पीड़ाकारण रहे उतने दिन तक प्रतिदिन ऊपर लिखे मन्त्रों का एक हजार जप करना उचित है। इन मन्त्रों के जप से किसी भी प्रकार की ग्रह पीड़ा नहीं होगी ।
मंत्र साधना और जैनधर्म
परिवार - रक्षा मन्त्र
ॐ अरि सर्वं रक्ष हँ फट् स्वाहा ।
सूचना- इस मन्त्र के द्वारा परिवार की रक्षा के लिए जप करना चाहिए । परिवार पर छाए सब आपत्ति, संकट दूर हो जाते हैं। एक माला प्रातः काल और एक सायंकाल फेरनी चाहिए ।
द्रव्य - प्राप्ति मन्त्र
ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं सिद्धाणं आयरियाणं उवज्झायाणं साहूणं मम, ऋद्धि-वृद्धि- समीहितं कुरु कुरु स्वाहा ।
सूचना- इस मन्त्र का नित्य प्रातःकाल, मध्या और सायंकाल को प्रत्येक समय में बत्तीस बार मन में ही ध्यान के रूप में मानसिक जप करें। सब प्रकार की सुख-समृद्धि, धन का लाभ और कल्याण हो ।
वर्धमानविद्या
नमस्कार मंत्र के पश्चात् जैन परम्परा में जिस मंत्र का विकास हुआ उसे वर्धमानविद्या कहा जाता है। यह माना जाता है कि वर्धमानविद्याकल्प नामक ग्रन्थ की रचना आर्य वज्रस्वामी ने लगभग ईसा की दूसरी शती में की थी । वर्धमान विद्या का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में मिलता है। 'सूरिकल्पसंदोह और मन्त्र राजरहस्यम्' में इसके उल्लेख हैं । सामान्यतया श्वेताम्बरमूर्तिपूजक जैन परम्परा
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