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११३ मंत्र साधना और जैनधर्म ६. ॐ नमो भगवओ अरहओ उसभसामिस्स सिज्झउ मे भगवई महई महाविज्जा। ॐ नमो भगवओ अरिहओ उसभसामिस्स आइतित्थगरस्स जस्सेअं जलं तं गच्छइ चक्कं सव्वत्थ अपराजि। आयाविणी ओहाविणी मोहणी थंभणी जभणी हिलि हिलि कालि कालि चोराणं भंडाणं भोइयाणं अहीणं दाढीणं नहीणं सिंगीणं वेरीणं जक्खाणं पिसायाणं मुहब्बंधणं दिट्ठिबंधणं करेमि ठः ठः स्वाहा।।
__ इस विद्या की विधिपूर्वक साधना करके चारों दिशाओं में और अपने वस्त्र में गाँठ लगाने से चोर, शत्रुसेना एवं भूतप्रेतादि का स्तम्भन होता है और उनका भय समाप्त हो जाता है। (२) ॐ अजिए अपराजिए अणिहए महाबले लोगसारे ठः ठः स्वाहा।
इस विद्या का १०८ बार जप करने से व्याधि और दारिद्र्य का नाश होता है, सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है और दम्पतियुगल में प्रीति होती है। (३) ॐ संभवे महासंभवे संभूए महासंभावणे ठः ठः स्वाहा।
पुष्प, पत्र, फल और अक्षत के द्वारा १००८ बार जप करने से इस शाम्भवी विद्या के द्वारा सिद्ध बलि, गंध से अथवा तेल के विलेपन से मनुष्य वश में हो जाता है। (४) ॐ नंदणे अभिनंदणे सुनंदणे महानंदणे ठः ठः स्वाहा।
इस विद्या के १०८ बार अभिमंत्रित जल से मुँह धोकर किसी मनुष्य के समीप जाने पर वह मनुष्य अनुकूल बन जाता है। (५) ॐ नमो सुमए सुमई सुमणसे सुसुमणसे ठः ठः स्वाहा।
__ इस विद्या से अपने को १०८ बार अभिमंत्रित करके सोने पर भविष्य में व्यक्ति के लिये क्या करने योग्य है, इसका ज्ञान हो जाता है। (६) ॐ पउमे महापउमे पउमुत्तरे पउमुप्पले पउमसरे पउमसिरि ठः ठः स्वाहा।
इस विद्या का १०८ बार जप करके उससे अभिमंत्रित कमल जिस व्यक्ति को दिया जाता है वह व्यक्ति वश में हो जाता है तथा साधक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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