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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना वशीकरण हो जाता है। (६७) सर्वसिद्धिकारकमन्त्र
'ॐ अरिहंताणं सिद्धाणं आयरियाणं उवज्झायाणं साहूणं नमः सर्वसमीहितसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।
जपनादयुतस्यैव सर्वसिद्धिर्भवेन्ननु।। इस मंत्र के दस हजार जप से सभी की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। (६८) कर्मक्षयार्थकमन्त्र
'ॐ ह्रीं अहँ अनाहतविद्यायै नमः । अथवा-'असिआउसा अनाहतविद्यायै नमः। इति कर्मक्षयः। इसके जप से सम्पूर्ण दुष्कर्मों का क्षय होता है। (६६) शुभाशुभादेशको मन्त्र
__ 'ॐ नमो अरिहओ भगवओ बाहुबलिस्स पण्हसव (म) णस्स अमले विमले निम्मलनाणपयासणि, ॐ नमो सव्वं भासई अरिहा सव्वं भासई केवली एएणं सव्ववयणेण सव्वं सच्चं होउ मे स्वाहा।'
इत्यात्मानं शुचिं कृत्वा, बाहुयुग्मेन संजपन्।
संपूज्य कायोत्सर्गेण, जिनं वक्ति शुभाशुभम् ।। इस मंत्र से अपने को पवित्र करके दोनों करों से जप करते हुए कायोत्सर्ग पूर्वक जिन की पूजा करने पर वह शुभाशुभ को बताने में समर्थ होता है। (७०) सर्वसिद्धिप्रदमन्त्र
'ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं मम ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं कुरु कुरु स्वाहा।'
अयं मन्त्रो बुधेन शुचिना प्रातः सन्ध्यायां द्वात्रिंशद्वारं स्मरणीयः, सर्वसिद्धिप्रदः । पवित्र होकर इस मंत्र का प्रातः और सन्ध्या में बत्तीस बार स्मरण करने से सब कार्यों की सिद्धि होती है।
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