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जैनधार्मिक अनुष्टानों में कला तत्त्व
ग्रंथों की रचना भी की है।
जिनभक्ति के रूप में संगीत की स्वीकृति का आगमिक आधार राजप्रश्नीय सूत्र है। उसमें सूर्याभदेव के द्वारा भगवान महावीर एवं अन्य श्रमणों के सम्मुख विविध राग-रागिनियों एवं विविध वाद्यों के साथ संगीत एवं नाटक प्रस्तुत किये जाने के उल्लेख हैं। वस्तुतः राजप्रश्नीय का यह स्थल लाक्षणिक रूप से इस बात का संकेत करता है कि उसके रचनाकाल तक जैन मुनियों के लिए धार्मिक गीतों का गाना और सुनना वर्जित नहीं रह गया था। परिणामतः चैत्यवास के विकास के साथ जैन परम्परा में जैन मुनियों ने संगीत कला को प्रश्रय देना प्रारम्भ किया, जिसकी आलोचना सम्बोधप्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने की है। वैराग्य की साधना में संगीत का क्या स्थान होना चाहिए यह एक विवादास्पद प्रश्न है किन्तु इतना निश्चित है कि मनुष्य को तनावों से मुक्त करने और अपनी चित्तवृत्ति को केन्द्रित करने में संगीत का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
कृत्यसाध्य कलाओं में नृत्य और नाटक का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। सामान्यतया नाटक लोकजीवन का एक अंग प्राचीनकाल से रहा है। अतः धार्मिक कृत्य के रूप में न सही किन्तु लोक व्यवहार के रूप में नाटक की परम्परा जैन धर्म के साथ प्राचीनकाल से जुड़ी हुई है। सर्वप्रथम तो तीर्थंकर के जन्मोत्सव आदि मांगलिक अवसरों पर देवी-देवताओं के द्वारा तथा सामान्य जनों के द्वारा नाटक किये जाने के उल्लेख श्वेताम्बर जैन आगम साहित्य एवं दिगम्बर जैन पुराणसाहित्य में उपलब्ध होते हैं। वस्तुतः देवता तीर्थंकरों के सम्मुख नाटक करते हैं यह बात नाटक को धार्मिक जीवन का एक अंग बनाने की दृष्टि से ही प्रचलित हुई होगी क्योंकि इसी आधार पर कहा जा सकता है कि देवता जब तीर्थंकरों के सम्मुख नृत्य-नाटक आदि कर सकते हैं तो गृहस्थजनों को भी जिनप्रतिमा के सम्मुख नृत्य, नाटक आदि करके अपना भक्तिभाव प्रदर्शित करना चाहिए। जैन परम्परा में धार्मिक जीवन के अंग के रूप में नृत्य एवं नाटक की परम्परा के मुख्य तीन उद्देश्य थे, १. तीर्थंकरों के प्रति अपनी भक्तिभावना का प्रदर्शन करना, २. ऐसे रुचिकर कार्यक्रमों के द्वारा लोगों को धार्मिक क्रियाकलापों में आकर्षित करना और ३-उन्हें वैराग्य की दिशा में प्रेरित करना। इस आधार पर जैन नाटकों का भक्ति और वैराग्य प्रधान रूप विकसित हुआ। हमें ऐसे भी संकेत मिलते हैं कि इस प्रकार के नाटक पर्याप्त प्राचीनकाल से ही जैन परम्परा में मंचित भी किये जाते थे।
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