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मंत्र साधना और जैनधर्म (१३) देवत्रयीविद्या
ॐ ह्रीँ अर्हत्-सिद्ध-साधुभ्यो ह्रौँ नमः।।' (१४) षडक्षरीविद्या
'ॐ ह्रीं अर्ह नमः। फलम्- 'इति षडक्षरी विद्या, कथिता दीक्षितार्पणे ।।" यह षडक्षरी विद्या दीक्षित करते समय शिष्य को प्रदान की जाती है। (१५) षड्वर्णसंभूताविद्या
'अरिहंत सिद्ध । अथवा-'अरिहंत साहु ।' अथवा-जिनसिद्धसाहु।' फलम्- “विद्यां षड्वर्णसंभूतामजय्यां पुण्यशालिनीम् ।
जपन् चतुर्थमभ्येति, फलं ध्यानी शतत्रयम्।।' इसके ३०० जप से उपवास का फल मिलता है। (१६) चतुर्वर्णमयमन्त्र
'अरिहंत।' अथवा- "जिनसिद्ध ।' अथवा- 'अर्हत्सिद्ध ।' फलम्-'चतुर्वर्णमयं (यो) मन्त्रं (मन्त्रः), चतुर्वर्गफलप्रदम् (दः)।
चतुःशती जपन् योगी, चतुर्थस्य फलं भजेत्।। इसको ४०० बार जपने से उपवास का फल होता है। यह मन्त्र धर्म, अर्थ, काम
और मोक्षरूप चतुर्वर्ग का प्रदाता है (१७) द्विवर्णमन्त्र
'सिद्ध । अथवा-'जिन।' अथवा- 'अहँ ।' (१८) एकाक्षरीमन्त्र- 'ॐ।' फलम्- 'ॐकारं बिन्दुसंयुक्त, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव, प्रणवाय नमो नमः ।। यह मन्त्र लौकिक सुख और मुक्तिप्रदाता है।
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