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८४ जैनधर्म और तान्त्रिक साधना क्रम की दृष्टि से और जैन साधना पर अन्य तान्त्रिक परम्पराओं के प्रभाव की दृष्टि से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
(१) प्रथम वर्ग में वे मंत्र आते हैं जो स्वरूपतः आध्यात्मिक हैं, जिनमें किसी भी लौकिक आकांक्षा की पूर्ति की कामना नहीं है और इनके उपास्य भी जैनों के अपने पूज्य पुरुष हैं। इस प्रकार के मंत्रों में मुख्यतः नमस्कार संबंधी मंत्र आते हैं यथा-नमो अरहताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं, णमो जिणाणं, णमो ओहिजिणाणं, णमो केवलीणं, णमो उग्गतवस्सीणं, णमो दित्ततवस्सीणं, णमो पडिमा पडिवण्णाणं, णमो उग्गतवाणं, णमो चउदस्स पूवीणं, णमो दस पुवीणं, णमो इक्कारसंग धारीणं आदि । यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि इन मंत्रों में जिन्हें भी नमस्कार किया गया है, उनमें सिद्ध (मुक्तात्मा) को छोड़कर सभी साधना की विशिष्ट अवस्थाओं को प्राप्त मानवीय व्यक्तित्व हैं। इनमें कोई भी देव नहीं है।
(२) दूसरे वर्ग में वे मंत्र आते हैं, जिनका मूलस्वरूप तान्त्रिक परम्परा से गृहीत है किन्तु जिन्हें जैन दृष्टिकोण के आधार पर विकसित किया गया है, इनकी साधना में किसी सीमा तक लौकिक मंगल और उस हेतु अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति की कामना निहित होती है। इन मंत्रों के देवता या तो पंचपरमेष्ठिन् एवं शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ आदि कुछ तीर्थंकर होते हैं अथवा फिर यक्ष-यक्षी आदि के रूप में वे देवता हैं जिन्हें जैनों ने अन्य तांत्रिक परम्पराओं से गृहीत कर अपने देवकुल का सदस्य बना लिया है। इस प्रकार के मंत्रों के उदाहरण निम्न हैं
ॐ नमो अरिहो भगवओ अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झाय सव्वसंघ धम्मतित्थपवयणस्स।
ॐ नमो भगवइए सुयदेवयाए, संतिदेवयाए, सव्वदेवयाणं दसण्हं दिसापालाणं पञ्चण्हं लोकपालाणं ठः ठः स्वाहा।
-मंत्रराज रहस्यम् (सिंहतिलक सुंरि), भारतीय विद्याभवन, बम्बई (१६८०) पृ० १२७
(३) तीसरे वर्ग में वे मंत्र आते हैं जो मूलतः तान्त्रिक परम्परा के हैं और जिन्हें जैनों ने केवल देवता आदि का नाम बदलकर अपना लिया है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्रथम दो वर्गों के मंत्र मूलतः प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं, यद्यपि दूसरे प्रकार के मन्त्रों की रचना-स्वरूप तान्त्रिक परम्परा से गृहीत होने के कारण
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