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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना ६४
. जैन परम्परा का उद्घोष है- 'वन्दे तद्गुणलब्धये अर्थात् वन्दन करने का उद्देश्य प्रभु के गुणों की उपलब्धि करना है। जिनदेव की एवं हमारी आत्मा तत्त्वतः समान है, अतः वीतराग के गुणों की उपलब्धि का अर्थ है स्वस्वरूप की उपलब्धि। इस प्रकार जैन अनुष्ठान मूलतः आत्मविशुद्धि और स्वस्वरूप की उपलब्धि के लिए है। जैन अनुष्ठानों में जिन गाथाओं या मन्त्रों का पाठ किया जाता है उनमे भी अधिकांशतः तो पूजनीय के स्वरूप का ही बोध कराते हैं अथवा आत्मा के लिए पतनकारी प्रवृत्तियों का अनुस्मरण कर उनसे मुक्त होने की प्रेरणा देते हैं। जिनपूजा के विविध प्रकारों में जिन पाठों का पठन किया जाता है या जो स्तोत्र आदि प्रस्तुत किये जाते हैं उनका मुख्य उद्देश्य आत्मविशुद्धि ही है। साधक आत्मा, आत्म-विशुद्धि में बाधक शक्तियों के निवर्तन के लिए ही धर्म-साधना करता है। वह धर्म को इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के शमन का साधन मानता है।
किन्तु जैसाकि हम पूर्व में बताचुके हैं मनुष्य की वासनात्मक स्वाभाविक प्रवृत्ति का यह परिणाम हुआ कि जैन परम्परा में भी अनुष्ठानों का आध्यात्मिक स्वरूप पूर्णतया स्थिर न रह सका, उसमें विकृति आयी। जैनधर्म का अनुयायी आखिर वही मनुष्य है, जो भौतिक जीवन में सुख-समृद्धि की कामना से मुक्त नहीं है। अतः जैन आचार्यों के लिए यह आवश्यक हो गया कि वे अपने उपासकों की जैनधर्म में श्रद्धा बनाये रखने के लिए जैनधर्म के साथ कुछ ऐसे अनुष्ठानों को भी जोड़ें जो अपने उपासकों के भौतिक,कल्याण में सहायक हों। निवृत्तिप्रधान अध्यात्मवादी एवं कर्मसिद्धान्त में अटल विश्वास रखने वाले जैनधर्म के लिए यह न्याय संगत तो नहीं था फिर भी यह ऐतिहासिक सत्य है कि उसमें यह प्रवृत्ति विकसित हुई है।
यह हम पूर्व में कह चुके हैं कि जैनधर्म का तीर्थंकर व्यक्ति के भौतिक कल्याण में साधक या बाधक नहीं हो सकता है, अतः जैन अनुष्ठानों में जिनपूजा के साथ यक्ष-यक्षियों के रूप में शासनदेवता तथा देवी की कल्पना विकसित हुई और यह माना जाने लगा कि अपने उपास्य तीर्थंकर की अथवा अपनी उपासना से शासनदेवता (यक्ष-यक्षी) प्रसन्न होकर उपासक का सभी प्रकार से कल्याण करते हैं।
शासनरक्षक देवी-देवता के रूप में सरस्वती, अम्बिका, पद्मावती, चक्रेश्वरी, काली आदि अनेक देवियों तथा मणिभद्र, घण्टाकर्ण महावीर, पार्श्वयक्ष, आदि यक्षों, नवग्रहों, अष्ट दिक्पालों एवं अनेक क्षेत्रपालों (भैरवों) के पूजा विधानों
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