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जैनधर्म और तान्त्रिक साधना
यावच्चन्द्रदिवानाथौ तावत् पद्मावतीपूजा ।।१३।। ये जनाः पूजन्ति पूजां पद्मावती जिनान्विता । ते जनाः सुखमायान्ति यावन्मेरुर्जिनालयः ।।१४ ||
प्रस्तुत स्तोत्र में पद्मावती पूजन का प्रयोजन वैयक्तिक एवं लौकिक एषणाओं की पूर्ति तो है ही, इससे भी एक कदम आगे बढ़कर इसमें तन्त्र के मारण, मोहन, वशीकरण आदि षट्कर्मों की पूर्ति की आकांक्षा भी देवी से की गई है। प्रस्तुत पद्मावती स्तोत्र का निम्न अंश इसका स्पष्ट प्रमाण है
ॐ नमो भगवति! त्रिभुवनवशंकारी सर्वाभरणभूषिते पद्मनयने! पद्मिनी पद्मप्रमे! पद्मकोशिनि! पद्मवासिनि! पद्महस्ते! हीं हीं कुरु कुरु मम हृदयकार्य कुरु कुरु, मम सर्वशान्तिं कुरु कुरु, मम सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु, सर्वलोकवश्यं कुरु कुरु, मम सर्व स्त्रीवश्यं कुरु कुरु, मम सर्वभूतपिशाचप्रेतरोषं हर हर, सर्वरोगान् छिन्द छिन्द, सर्वविघ्नान् भिन्द भिन्द, सर्वविषं छिन्द छिन्द, सर्वकुरुमृगं छिन्द छिन्द, सर्वशाकिनी छिन्द छिन्द, श्रीपार्श्वजिनपदाम्भोजभृङ्गि नमोदत्ताय देवी नमः । ॐ हाँ हीं हूं हाँ हः स्वाहा । सर्वजनराज्यस्त्रीपुरुषवश्यं सर्व २ ॐ आँ की ऐं क्लीं हीं देवि! पद्मावति । त्रिपुरकामसाधिनी दुर्जनमतिविनाशिनी त्रैलोक्यक्षोभिनी श्रीपार्श्वनाथोपसर्गहारिणी क्लीं ब्लूं मम दुष्टान् हन हन, मम सर्वकार्याणि साधय साधय हुं फट् स्वाहा।
आँ जाँ हीं क्लीं हौं पद्म! देवि! मम सर्वजगद्वश्यं कुरु कुरु, सर्वविघ्नान् नाशय नाशय, पुरक्षोभं कुरु कुरु, ह्रीं संवौषट् स्वाहा।
ॐ आँ जाँ हाँ हाँ द्रीं क्लीं ब्लू सः ह्मळ पद्मावती सर्वपुरजनान् क्षोभय क्षोभय, मम पादयोः पातय पातय, आकर्षणीं ह्रीं नमः।
ॐ ह्रीं क्राँ अहँ मम पापं फट् दह दह हन हन पच पच पाचय पाचय हं मं मां हं क्ष्वी हंस भं वह्य यहः क्षां क्षीं हूं क्षं झै क्षों क्षं क्षः क्षिं हाँ ही हं हे हों हौं हः हिः हिं द्रां द्रिं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते भगवते श्रीमते ठः ठः मम श्रीरस्तु, पुष्टिरस्तु, कल्याणमस्तु स्वाहा।।
ज्वालामालिनीस्लोल इससे यह फलित होता है कि तान्त्रिक साधना के षट्कर्मों की सिद्धि के लिए भी जैन परम्परा में मंत्र, जप, पूजा आदि प्रारम्भ हो गये थे उपरोक्त पद्मावती स्तोत्र के अतिरिक्त भैरवपद्मावतीकल्प में परिशिष्ट के रूप में प्रस्तुत निम्न ज्वालामालिनी मन्त्र स्तोत्र से भी इस कथन की पुष्टि होती है। यह स्तोत्र
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