Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 14
________________ ( १३ ) आपके दोनों पुत्रोंकी रक्षा व शिक्षाका समुचित प्रबन्ध होता रहा । किंतु सन् १९९८ में ला० सरदारसिंहजी का भी स्वर्गवास होगया । अपने बाबा सरदार सिंहजी की मृत्युके समय श्री० महावीर-प्रसादजीने एफ० ए० पास कर लिया था और साथ ही ला० सम्मनलालजी जैन पट्टीदार हांसी ( जो उस समय ग्वालियर स्टेटके - नहर के महकमा में मजिस्ट्रेट थे ) निवासीकी सुपुत्री के साथ विवाह भी होगया था। श्री० शांतिप्रसादजी उस समय चौथी कक्षा में पढ़तेथे । अपने बाबाजीकी मृत्यु होनानेपर श्री० महावीरप्रसादजी उस समय अधीर और हताश न हुये, किन्तु उन्होंने अपनी पूज्य माताजी ( श्रीमती ज्वालादेवीजी) की आज्ञानुसार अपने श्वसुर ला० सम्मतलालजीकी सम्मति व सहायता से अपनी शिक्षा- वृद्धिका क्रम अगाडी चालू रखने का ही निश्चय किया, जिसके फलस्वरूप वे काहौर में ट्यूशन लेकर कालेज में पढ़ने लगे। इस प्रकार पढ़ते हुये उन्होंने अपने पुरुषार्थ वलसे चार वर्षमें वकालतका इम्तिहान पास कर लिया. और सन् १९२२में वे वकील होकर हिसार आगये । हिसार में वकालत करते हुये आपने असाधारण उन्नति की, और कुछ ही दिनोंमें आप हिसार में अच्छे वकीलोंमें गिने जाने लगे । आप बड़े धर्मप्रेमी और पुरुषार्थी मनुष्य हैं । मातृ-भक्ति आपमें कूट कूटकर भरी हुई है। आप सर्वदा अपनी माताकी आज्ञानुसार काम करते हैं। अधिक से अधिक हानि होनेपर भी माताजीकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं करते हैं। आप अपने छोटे भाई श्री० शान्तिप्रसादजी के ऊपर पुत्र के समान स्नेहदृष्टि रखते हैं । उनको भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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