Book Title: Jain Bauddh Tattvagyan Part 02
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ (१५) जगतसिंहमी वा० महावीरप्रसादजी वकीलके पास ही रहकर कार्य करते हैं । ला० जगतसिंहजी सरल प्रकृतिके उदार व्यक्ति हैं। माप समय २ पर व्रत उपवास और यम नियम भी करते रहते हैं। आप त्यागियों और विद्वानोंका उचित सत्कार करना अपना मुख्य कर्तव्य समझते हैं । हिसारमें ब्रह्मचारीजीके चातुर्मासके समय आपने बड़ा सहयोग प्रगट किया था। उक्त चारों भाइयोंमें परस्पर बड़ा प्रेम था, किसी एककी मृयुपर सब भाई उसकी और एक दुसरेकी संतानको अपनी संतान समझते थे। ला० ज्वालाप्रसादजीके पिता ला० केदारनाथजी फतिहाबाद (हिसार) में मर्जीनवीसीका काम करते थे, और उनकी मृत्युपर ला ज्वालाप्रसादजी फतिहावादसे आकर हिसारमें रहने लग गये, और वे एक स्टेटमें मुलाजिम होगये थे। वे अधिक धनवान न थे, किन्तु साधारण स्थितिके शांत परिणामी, संतोषी मनुष्य थे। उनका गृहस्थ जीवन सुख और शांतिसे परिपूर्ण था। सिर्फ ३२ वर्षकी अल्प आयुमें उनका स्वर्गवास होजानेके कारण श्रीमतीमी २७ वर्षकी आयुमें सौभाग्य सुखसे वंचित होगई। पतिदेवकी मृत्युके समय आपके दो पुत्र थे। जिसमें उस समय महावीरप्रसादजीकी भायु ११ वर्ष और शांतिप्रसादनीकी भायु सिर्फ छः मासकी थी। किन्तु ला० ज्वालाप्रसादजी (ला. महावीरप्रसजी पिता ) की मृत्यु के समय उनके चाचा ला०सरदारसिंहजी जीवित थे। उस कारण उन्होंने ही श्रीमतीजीके दोनों पुत्रोंकी -रक्षा व शिक्षाका भार अपने ऊपर लेलिया और उनींकी देखरेखमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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