Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
२२
जैनवालवोधकगुरूपास्ति-निग्रंथ गुरुकी उपासना कहिये सेवा पूजा संगति करना परन्तु निग्रंथगुरुंकी प्राप्ति इस पंचम काल में होना कठिन साध्य है इसलिये सम्यग्दृष्टि ज्ञानवान विद्वान अहलक तुल्लक वा ब्रह्मचारी त्यागीको प्रणाम वन्दना करके उनके पास बैठना उनका उपदेश सुनना । यदि अंहलक वगेरहकी प्राप्ति न हो तो शास्त्र यांचनेवाले विशेष ज्ञानी पंडितकी सेवामें बैठना तथा कोई भी उपदेश सुनना । तथा गुरुयोंकी स्तुति स्तोत्रोंका पाठ करना सो भी गुरूपास्ति कहानी है। - स्वाध्यायफरना-कोई भी शास्त्रजी लेकर चौकीपर विरानमान करके विनयके साथ समझ समझकर वांचना । तथा बांचना नहिं आवै तौ कोई अन्य भाई स्वाध्याय करते हों उनके पास बैठकर सुनना तथा प्रश्नोत्तर चर्चा करना, दूसंरोके प्रश्नोत्तर चर्चा सुनना सो स्वाध्याय है। तथा विद्याथियोंको यदि पृथक शास्त्रके स्वाध्याय करनेको समय नहि मिल तो अपने पड़े हुये धर्मशास्त्र के पाठोंको फेरना या उनका अर्थ विचार करना यह भी नित्य स्वाध्यायमें गिना जा सकता है। - संयम करना-पांच इन्द्रियों और मनको वामें करके पंचेंद्रियोंके विषय सेवनमें उदासीनता धारण करना संयम है। तथा सब नहिं बने तो किसी एक दो विषयमें नित्य उदासीनता रखना भी संयम है । जैसे-सामायिकके बाद