Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग। जिनके दर्शन किये चिचमें, उदय नहीं होने समभाव। जिनके पढने सुननेसे नहि, उप चरित हो, होनसुभाव।। जिन्हें मान आदर्श चलेसे, सत्यमार्ग भूले पढ जाय । ऐसे खोटे देव शास्त्र गुरु, शुद्ध दृष्टिसे विनय न पाय ॥
शुद्ध सम्यग्दृष्टि देव कुशास्त्र कुगुरुको भय पाया प्रीति या लोभसे प्रणाम या विनय नहि करते ॥ २७॥
सम्यग्दर्शनकी मुल्यता। ज्ञान शक्ति है ज्ञान बढा है, कोई वस्तु न ज्ञान समान । त्यों चारित्र बडा गुणधारी, सव सुखकारी श्रेष्ठ महान ।। पर मित्रो दर्शनकी महिमा, इन सबसे बढकर न्यारी। मोक्ष मार्गमें इसकी पदवी, कर्णधार जैसी भारी ॥२८॥
ज्ञान और चारित्रकी अपेक्षा सम्यग्दर्शन मुख्यतासे उपासना किया जाता है, क्योंकि सम्यग्दर्शन मोक्षमार्गमें खेवटियेकी समान अधिकतर सहायक है ॥ २९ ॥
सम्यग्दर्शन नहिं होवै तौ, ज्ञान चरित्र कभी शुभतर । फलदाता नहि हो सकते, जैसे बीज विना तरुवर ।। सम्यग्दर्शन विना ज्ञानको, मित्रो समझो मिथ्याज्ञान ।
वैसे ही चारित्र समझ लो, मिथ्याचरित सकलदुखखान जिसमकार वीजके विना उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि वा फलोदय नहिं होता उसीप्रकार सम्यग्दर्शनके विना सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रकी उत्पत्ति, स्थिति, वृदि और