Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 255
________________ २४७ तृतीय भाग। ममताको छोड करके संतोष धारण करे. रुपया पैसा पास न रक्खे सो परिग्रह त्याग प्रतिमा है। १०। अनुमतित्यागप्रतिमा-मारंभ परिग्रह तथा लोक संबंधी कार्योंमें अनुमती देने का त्याग कर देना सो दशवीं अनुमति त्याग प्रतिपा है ।। ११ । उद्दिष्ट प्रतिमा । कविताघरको नजि मुनि वनको जाकर गुरु समीप व्रतधारण कर । तपते हैं भिक्षाशन करते, खंड वस्त्रधारी होकर ।। उत्तम श्रावकका पद यह है, जो मनुष्य इसको गहते । उन्हें श्रेष्ठजन नुटक.रेलक, भाग्यवान् श्रावक कहते ।। इसका अर्थ स्पष्ट है। --- --- ७१. मेढककी कथा। मगधदेश के राजगृह नगरमें राजा श्रेणिक राज्य करते थे, वहींपा नागदत्त सेठ रहते थे जिनकी स्त्री का नाम भवदत्ता था वह नागदच सेट बडा मायावी या, इसलिये जब मरण हुभा तो पाकर अपने आंगनकी बावड़ीमें मेढक दुमा एक समय उस बावडीका जल भरने के लिए भवदत्ता सेठानी आई उसे देखकर मेढकको पूर्वभवका जातिम्मरण हो आया जिससे कूदकर भवदत्ताके अंगको चाटने लगा उसने (भव

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