Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग। मार डालना जिसे हमारे तुम्हारे कामसेवनमें किसी प्रकार की पाधान प्रासकेगी, पासमें ही मुंदरी खडी यी और उसने यह सुनकर गुणपालसे कह दिया कि भाई ! तुम कल होशयार रहना, तुम्हें कुंडलके हाय माता मरवानेवाली है, सुबह होते ही धनश्रीने गुणपालसे कहा कि वेटा ! आज तुम गोवाको लेकर चरा लाओ, कुंडढकी ववियत सराव है, वह वेचारा सब समझ गया परन्तु माताकी आज्ञानुकूल गोधन लेकर हार वन) को चला गया और अपने कपडे उतार कर एक काटके टुकडेको पहिना दिये एवं स्वयं छिपकर वहीं बैठ गया। जब कुंडल हायमें तलवार लेकर भाया तो उस काठको ही गुणपाल समझकर अपनी तलवार उसपर चलादी वहीं लुका गुणपाळ वैठा था वह धीरसे उठकर कुंडल के पास आया और एक तलवार ऐसी मारी कि कुंडलका शिर अलग होगया और वहांसे चलकर घर आगया। जब धनश्रीने कुंडलको घर आया हुआ न देखा तो बोली-कुंडल कहां है ? उसने कहा मुझे मालूम नहीं है इस तलवारसे पूछ ले, जब उसने तलवार देखी तो वह उनसे लाल हो रही थी। घनश्री समझ गई कि पापीने उसे मारडाला है । इसलिए उसने तलवार लेकर गुणपालको मारडाला, यह देखकर सुंदरी दौडी और इससे धनश्री को मारना शुरू किया जब इस कोलाहलको कोतवालने सुना तो शीघ्र दौडा पाया और घनश्रीको पकडकर राजा