Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग :
२२३ :
विश्वास नहीं होता था कि यह ब्राह्मण है परंतु ऊपरी तौर से उससे बातचीत करना ही पडती थी, कारण कि सत्य -- भामा उसकी हो चुकी थी, परंतु सत्यभामा हमेशा इसी तलाश में रहा करती थी कि इसका वास्तविक पता लगाऊं ।। भाग्यसे रुद्रभट्ट तीर्थयात्रा करता हुआ रत्नसंचयपुरमें आ पहुंचा, जब कपिलने इसे देखा तो उसका वडा चादर सत्कार किया और उसे बहुत धन भी इस मयसे दिया कि मेरी पशेल न खोल देवें, मनुष्योंने जब यह पूछा कि आपके : ये कौन है वो उस कपिलने उसको अपना पिता बताया रुद्रने भी लालच में आकर इसे स्वीकार कर लिया। अब तो मनुष्योंको कपिलके विषय में सच्चा विश्वास हो गया था कि कपिल सच्चा ब्राह्मण और वेदपाठी है परन्तु सत्यभामा का अभी संदेह नहीं गया था इसलिये जैसे हो कपिल कारण वश दूसरे ग्राम गया कि सत्यभापाने रुदभट्टको खूब धनं देकर निवेदन किया- महाराज सत्य वर्तळाइए कि कपिल आपके कौन हैं, पहिले तो रुद्रभट्ट बडे विचार में पड गये परंतु सत्यभामा के आग्रह करने पर सत्य हाल कह सुनायाऔर आप उसी समय घरको खाना हो गए । सत्यभामाकपिलको बनावटी ब्राह्मण समझकर उससे विरक्त हो गई और कुपित होकर सिंहनंदिता महारानी के पास चली गई। उसने अपनी पुत्री के समान समझकर उसे रख लिया। एक वार श्रीषेण राजाने वडी भक्ति से विधिपूर्वक चारण-मुनियों
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