Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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२४२ - जैनवालबोधक. ६९. वसतिका दानमें सूकरकी कथा ।
-:मालव देशके घटयाममें देविल नामका कुंभकार और धम्मिल नामका नाई रहा करता था । उन दोनोंने एक मठ (मकान ) इसलिए वनवाया जिसमें रास्तेगीर आकर ठहरें और अपनी थकावटको दूर करें । एक समय देविलने जब कि मकान बन चुका था, एक मुनिको लाकर सबसे पहिले ठहरा दिया और श्राप घरको चला गया । थोडी देर पीछे धम्मिल एक ढोंगी सन्यासीको वहां लाया और.. उसे वहां ठहराकर उन मुनिमहाराजको जिन्हें देविल ठहरा गया था, उन्हें निकाल दिया । वे विचारे वहांसे चलकर एक वृत्तके नीचे ध्यान लगाकर स्थित हो गए और रात्रिमें नाना प्रकारकी देशमशक आदि परोषहको सहन किया । सुबह होते ही देविल और धम्पिल उस मठमें आ पहुंचे परंतु जब देखिलने मुनिमहाराजको वहां न देखा तो उसे बडा गुस्सा पायर्या और धम्मिलसे लडना शुरू कर दिया, इतनी लडाई हुई कि अन्तमें दोनों मरकर देखिल तो मूकर हुआ और धरिल व्याघ्र हुआ। जिम गुहा में यह सूकर रहा करता था उसी गुहामें एक समय समाविगुप्ति और त्रिगुप्ति नामके दो मुनि वहां आए और उस गुहामें ध्यान लगाकर स्थित हो गए। उन दोनों मुनियोंको सूकर देख