Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधकउसके यहां लड्डू जीमनेवालोंको और सबसे अधिक घिकार उनको जो रुपये देकर विवाह करते हैं।
शिष्य-गुरुजी ! जरा विचार तौ कीजिये ! आपने तौ सवको धिक्कार ही धिक्कार दे दिया परन्तु मेरी समझमें नहिं पाता कि-वे धिक्कारके पात्र क्यों हैं ? बेटीवाला तौ गरीब है बेटीका विवाह करै तौ वियाना भात देकर सारी विरादरीको ( सवकी देखा देखी) न जिमावै तौ निंदा करैं इसलिये उसने हजारके खर्चकी जगह दो हजार लेलिये सो एक हजार तौ वेटीके व्याइमें लड्डू जिमा दिये, एकहजार रह गये उससे उसका गुजारा दो तीन वर्ष चल जायगा। विरादरीवालोंको जीमनेके लिये लड्डू मिल गये। उनका क्या? उन्हे रुपया खर्च किये बिना बहू कहांसे मिले तव दो हजार देकर व्याह कर लिया और घर बांध लिया । बालबच्चोंको सम्भालने वाली घरमें आगई। अगर ऐसा नहिं करते तो क्या करते ?
गुरु-माई! करते क्या चुल्लू भर पानीमें नाक डुबो कर मरजाते। हाय ! हाय ! कैसा घोर कलियुग आगया है। कन्या जपाईका पैसा खाना तो दूर रहो, बलके जिस गांवमें कन्या व्याही जाती उस गांवके कूएकापानी पीना तक पाप समझा जाता था। आज हमारे भारतवासी ऐसे नालायक लोभी पापी हो गये जो कन्याको बेच कर बूटेके साथ व्याह कर दो चार वर्षमें विधवा बनाकर उसका जन्म नष्ट करके