Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधक कौडियोंकी मूठ लाकर छक्के पंजे खेलते हैं उसमें एक २ दाव पर पैसे रुपये रख देते हैं सो भूठ लानेवालेका दाब आता है तो वह सबका पैसा ले लेता है और दाव लगाने वालेका दाव आगया तो उसे उतना ही देना पड़ता है इत्यादि नाना प्रकारकी शर्ते लगाकर जूआ खेलाजाता है।
जूआ समस्त दुराचारोंका राजा है और समस्त दुराचारोंको सिखानेवाला गुरु है। जो कोई जूमा खेलता है।
और वह जीत जावे नौ धनवानका लड का होने पर भी चोरी करना झूठ बोलना बेईमानी करना- अवश्य सीख जाता है. यदि आमें जीत हो जाती है तो वह जीता हुवा धन मायः वेश्यासेवन आदि अन्याय कार्योंमें ही खर्च हो जाता है। वेश्याके यहां जो लोग जाते हैं वे वहां शराव मांस भंग आदि खाना भी सीख जाते हैं जिससे न तो वह दीनके रहते और न दुनियांके । जूमारीका कोई भी विश्वास नहिं करता उससे घरकी स्त्री तक अपना गहना छिपाती है. जुआरीकी सिवाय घृणाके कहीं भी प्रतिष्ठा नहिं होतो इस जूमाके व्यसनसे ही पांडव नल. सरीखे सत्यवादी प्रतापी राजागण सर्वस्व खोकर : गली २ और जंगल २ मारे २ फिरते रहे । इस कारण जूमा वा जुआरीके पास खडा रहना भी अत्यन्त हानिकारक है। : इस जूएकी जड़ गंजफा तास चौरस सतरंज आदि खेलना है अर्थात् जिसमें हार और जीतका दाव आवे वे सब