Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग।
१६१ उसने एक न माजी और कहा पहिले मुझपर गुजरी हुई वार्ता सुनिये जिससे आपको पूरा निश्चय हो जायगा, वह यह है कि मेरी स्त्री अपनेको दडी पतिवूना बतलाया करती थी, यहां तक कि वह अपने बच्चे को दूध पिलाते ममय अपना स्तन नहीं छुवाती थी और कहा करती थी कि मेरे कुशील का त्याग है सिवा पेरे पतिके सव पुरुष परपति हैं इस लिये लड़केको कपडा, टक कर ऊपरवाला चूचक निकाल कर दूध पिला देती थी, परंतु रात्रि में एक गोपाल के साथ कुकर्म किया करती थी । यह एक दफे मैंने देख लिया इससे मैं विलकुल उस स्त्रीसे विरक्त होकर. तीर्थयात्राको चलं दिया और मेरे पास जो सुवर्ण की बहुत शलाईयां थीं उनको एक लडेमें भरकर साथ ले लिया और मैं तीर्थयात्रा करने लगा। भाग्यसे मुझे रास्तेमें एक बालक मिला
और उसने मेरा साथ कर लिया, वह हमेशा मेरे साथ ही रहा करता था परंतु में उसका विश्वास जरा भी नहिं करता या और अपनी लाठोकी सदैव रक्षा करता रहता था। एक दिन, हम दोनोंने रात हो जानेसे एक कुम्हारके घरमें वसेरा लिया और सुबह होने पर वहांसे चल दिये। थोड़ी दूर आए ये कि बालकने कहा-मुझसे बड़ा अपराध हो गया है कारण कि मेरी पगडीमें कुम्हारकानहीं दिया हुआ तिनका चला प्राया है. इसलिए लौटकर. उसीको. देनाऊं अन्यथा मुझे चोरीका पाप लगेगा । वह यह कह चल दिया और उसे