Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालयोधकभोगोपभोग परिमाणमें कौन २ सी वस्तु त्याज्य है ? त्रस जीवों की हिंसा नहिं हो, होने पावै नही प्रमाद । इसके लिये सर्वथा त्यागो, मास मद्य मधु छोड विपाद ।। अदरग्व निवपुष्प बहुवीजक, मक्खन मूल भादि सारी । तजो सचित चीजें जिनमें हों, थोडा फल हिंसा भारी ॥
त्रम जीवोंकी हिंसाका निवारण करनेके लिये मधु, मांस, और पमाद दूर करनेके लिये मद्य छोडने योग्य है इसके सिवाय फल थोडा हिंसा अधिक होनेके कारण सचित्त (कच्चे ) अदरख. मूला, गाजर, मक्खन, नीमके फूल, केतकीके फूल, इत्यादि वस्तुएं भी छोड देना चाहिये ।।
वास्तविक व्रतका लक्षण। जो अनिष्ट है, स-पुरुषोंके सेवनयोग्य नहीं जो है । योग्यविषयसे विरक्त होकर, तज देना जो व्रत सो है। . भोग और उपभोग त्यागके, बतलाये यम 'नियम' उपाय। अमुक समयतफ.त्याग नियम है, जीवन भरका 'यम' कहलाय॥
जो शरीरको हानिकारक है अथवा उत्तम कुलके सेवन योग्य नहीं वह तो त्यांगने योग्य है ही, परंतु योग्यविषयोंसे विरक्त होकर त्याग करना वही व्रत होता है। यह त्याग यम नियमके भेदसे दो प्रकारका होता है। कुछ कालकी मर्यादा करके त्यागना सो तो नियम है और यावजीव त्याग देना सो यम कहलाता है ।। ७०।।