Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 207
________________ तृतीय भाग । १६६. नगरके सब दरवाजोंको कीलकर राजा व मंत्रियोंको पूर्वोक्त स्वप्ना दे दिया। सुबह होते ही मनुष्योंने जब यह देखा तो बड़े अचंभे में पड गए और सब नगरवासी दुखित होने लगे, कारण कि भीतरके मनुष्य बाहर नहीं जा सकते थे, और न बाहर के भीतर | जब राजाने यह खबर सुनी तो रात्रिका स्वप्न स्मरण कर नगरकी सब स्त्रियोंको बुलाकर उनका पादस्पर्श कराना शुरू कर दिया परन्तु किसीसे किवाड़ न खुले । तब राजाने जैन मंदिरसे नीलीको बुलाया और अपना पद किवाडोंसे लगाने को कहा । नोलीने जैसे ही अपना पैर लगाया कि किवाड शीघ्र खुल गये । अब क्या था ? चारों तरफ से प्रशंसाकी आवाज गूंज उठी और राजाने उसका पातिव्रत्य देखकर पूजा की । धन्य हैं जिस शील व्रतके माहात्म्पसे स्त्रियां भी राजाओंके द्वारा पूज्य हो जाती हैं यदि मनुष्य इससे भूषित हों, तो न जाने उन्हें किस अलौकिक सुखकी प्राप्तिन हो ? -:०: ५५. स्वदेशोन्नति । -:०:-- विद्यार्थियो ! जरा इयोरूपनिवासियों वा जापानियोंकी तरफ नजर उठाकर देखो कि उन्होंने थोडेही दिनोंमें अपने देशको कैसी उन्नति कर डाली है और दिनों दिन करते जाते हैं । तुमारे बुजुर्गोंने कहा है कि-

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