Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ तृतीय भाग । २१९ ६०. भूधर जैन नीत्युपदेशसंग्रह सातवां भाग । सुबुद्धि सखीके प्रति वचन | 1 मनहर कवित्त । - कहै एक सखी स्थानी तुन री सुबुद्धि रानी, तेरो पति दुखी देख लागै उर ओर है । महा अपराधी एक युग्गल है छहों माहि, सोई दुख देत दीसे नाना परकार हैं || कहत सुबुद्धि आली कहा दोष पुग्गलको, अपनी ही भूल लाल होत भाप रूवार है । "खोटो दाम थापनो सराफै कहा लागे वीर" काहूकौ न दोष मेरो भौंदू भरतार है ॥ १ ॥ द्रव्यलिंगी मुनिका वर्णन । शीत सहे तन धूप दहै, तर्फे हेट रहे करुणा उर आनै । मूठ कहें न दत है, वनिता न च लॅब लोभ न जानै ॥ मौन है पढि भेद लहै, नहि नेम हे व्रत रीति पिछाने । यों निवहै पर मोख नहीं, चिन ज्ञान यहै जिनवीर खाने || अनुभव प्रशंसा । मनहर | जीवन अलप आयु बुद्धि बलहीन तामें, आगम अगाधसिंधु कैसें ताहि डाक है । १ आर-कील । २ वृक्षके नीचे । ३ जरा भी । ४ छोडते । ५ कैसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263