Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग।
२०७ . मनको चलायमान करना, तनको चलायमान करना, वचन चलायमान करना, सामायिकमें अनादर करना, और सामायिकका समय वा पागेको भूल जाना ये पांच सामायिक शिक्षाव्रतके अतिचार हैं ॥१॥
- ५७. यमदंड कोतवालकी कथा।
: अहीर देशके नासिक्य नगरमें कनकरथ राजा राज्य करते थे, राजाके कोतवाल का नाम यमदंड था जिसकी भाताका नाम वसुंधरी या । जो छोटेपनमें विधवा हो जानेसे व्यभिचारिणी हो गई थी। एक समय वह वसुंधरा अपनी वहूसे कुछ गहने लेकर जारके पास जा रही थी उस समय अंधेरी. रात खूब हो ही चुकी थी इसलिए जैसे यह घरसे कुछ दूर ही पहुंची थी कि उघरसे यमदंड कोतवाल चौकी लगा रहा था उसने इसे जाते देख लिया और कोई व्यभिचारिणी समझ कर उसके पीछे हो लिया । जव वसुंधरा अपने नियत स्थानपर पहुंच गई तो यह भी वहीं पहुंच गया
और वसुंधराने इसे अपना जार समझकर, और इसने व्य'भिचारिणी समझकर परस्पर अपनी कामाग्निको शांत किया,
और उन गहनोंको यमदंडको देदिया, उसने आकर अपनी स्त्रीको सोंप दिये, स्त्रीने गहनोंको लेकर अपने पति यमदंडसे