Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनबालबोधक
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उसके प्यारे बन जाते हैं और उसे वेश्या सेवनादि कुकार्यों में लगाकर सत्र घन नष्ट कर देते हैं। अंतमें दरिद्र दुःखो होकर कुमरमासे मरता है । 1
मनुष्यों को मदिरा पीने का अभ्यास इस तरह पड जाता कि मनुष्य प्रायः खोटी संगतिमें रहने से अनेक कुकार्य करने लगता है । उस समय शरावका पोना भी उन खोटी इच्छा
साधनेका कारण हो जाता है । क्योंकि मदिरा बड़ी गर्म होती है इसको पहिलेही पहिले पीनेपर उसकी गर्मी से खून पतला हो जाता है और उसकी गति बढ़ जाती है जिससे नाडी बलवान हो जाने से कुछ कालकेलिए शरीर की शिथि लता नष्ट हो जाती है इस कारण उसको लाभदायक समझ रोज २ पीने लग जाते हैं । परंतु थोडी पीने से वह नशा तथा वह गर्मी नहिं आती, जैसी कि पहिले दिन मालूम दीथी ।. इस कारण दिनोंदिन मात्रा बढाने लगते हैं जिनको नित्य ' और बहुत २ पीनेका अभ्यास पढ जाता है उनको कमसे कुमा (अर्द्धांग वायु ) मंदाग्नि, बात, मूत्र रोग, कम्प वायु वगेरह अनेक रोग पैदा होने लगते हैं । तथा थोडे ही दिनोंमें शरीर काठकी लकडी के माफक सुख जाता है और शीघ्री काळके गाल में चला जाता है। कोई २ बहुतसा मद्य पीनेवाले हमेश के लिये पागल बनकर अपने जीवनका -सत्यानाश कर डालते हैं । जिस प्रकार मद्य शरीरको हानिकारक होती है इसी प्रकार गांजा चरस, चंडू भांग पोस्ता