Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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सूतीयभाग।
१८३ कहा-आप ठीक समझ गए थे कि यह पागल हो गया है इसे घरसे निकाल दीजिये, सत्यघोषने पागल कहकर समुद्रदत्तको घरसे निकाल दिया। विचारा राजाके पास गया परंतु उसकी कौन सुने । हाय ! राजाने भी वैसा ही किया भव विचारा निराश होकर घहरमें घूमने लगा, और सब जगह यही कहा करता था कि मेरे कीमती पांच हार सत्यघोष नहीं देता है। शत्रिको राजाके मकान के पीछे एक वृक्ष था उसपर बैठकर यही रटा करता था । जब इसतरह इसे छह माह हो गए तर एकदिन रामदचा रानीने महाराजसे कहा कि यह पागल नहीं है किंतु संबी ही मालूम पड़ता है भाप सत्यघोषकी परीक्षा करके तो देखिए, कहीं यह उग तो नहीं है ? राजाने भी यह बात मान ली और रानीसे परीक्षा करनेको कहा । रानीने एक दिन सत्यघोषको अपने महल में बु. लाया परंतु वह कुछ देरीसे पहुंचा । रानीने कहा-पाजतुम बडी देर कर पाए हो-उसने कहा । मेरे घरपर कुछ अतिथि आ गए थे इसलिए जिमाने में देरी हो गई। रानीने कहाखर ! परंतु अभी आप दारमें न जाइए । मेरा कुछ जी घबडा रहा है इसलिये चलो जुमा खेले । राजा भी इतनेमें आगया और उसने भी कह दिया कि कुछ हानि नहीं, थोडी देरतक रानीके साथ जुआ खेलो। उसवामणने खेलना शुरू कर दिया। रानी वडी ही निपुण थी इसलिए, उसने एक दासीको बुलाकर सत्यघोषकी स्त्रीके पास भेजा