Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधकऔर कह दिया कि तुम जाकर सत्यघोषकी स्त्रीसे कहना कि पुरोहितजी तो.रानीके पास बैठे हैं और उनने वे पाचों हार उस पागलके मगाए हैं। दासी उसके घर पहुंची और सव वृत्तांत कह सुनाया । परन्तु उसने माफ नाई कह दी कि मैंने नहीं देखे । दृती चली आई और रानीसे जो कुछ उसने कहा था, कह दिया । रानीने पुरोहितजीकी अंगूठी जुआ जीत ली थी इसलिए वह देकर भेजी और कहा कि शीघ्र हार ले आयो । अबकी दफे वह फिर गई परंतु फिर भी उसने न दिये। तीसरी दफे रानीने यज्ञोपवीत.जीत लिया या और उसे देकर भेजा। दासी फिर गई और बोली तुम्हे विश्वास नहीं होता है। देखो ! पुरोहितजीने श्रवके अपना जनेऊ विश्वासके लिये भेजा है और कहा है कि पांचोंहार दे देवे । उसने विश्वापमें आमर पांचों हार देदिये । दासो ले कर रानीके पास आई और हारको दे दिया। रानीने गजा को वे हार दिखा दिये परंतु राजाने उन पांचो हारोंको बहुतसे हारों में मिला दिया और उस समुद्रदत्तको बुलाकर कहा कि तुम अपने हारोंको इनमें से उठा लो। समुद्रदत्त तो अच्छी तरहसे अपने हारोंको जानता था इसलिए उसने उन हारोंमेंसे अपने पांचो हारोंको उठा लिया । अव राजाको विल्कुल विश्वास हो गया कि सत्यघोष वटा ठग और धूर्त है राजाने सत्यघोषसे कहा कि तुमने यह काम किया है या नहीं ? सत्यघोषने कहा-महाराज ! ऐसा प्रसाधु कर्म