Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनगलवोधकके पास ले गया। गजाने गर्दभ पर चढाकर सारे शहरमें फिराया और नाक कान काट लिए ऐसी दुर्दशा होनेपर धनश्री मरगई और मरकर नरकादि गतिको माप्त हुई।
पूर्वोक्त कथाका सारांश यही है कि जो दूसरोंका घात नहि वरिक बुरा भी विचारता है वह इसलोक और परलोकमें भी दुःख प्राप्त करता है जैसा कि घनश्रीके दृष्टान्तसे मालूम पडा ।
४७. श्रावकाचार छठा भाग।
तीन गुणव्रत । मूलगुणोंकी बढ़ती होवे, इसके लिये गुणव्रत तीन । कहे श्रेष्ठ पुरुषोंने नीके, जिनसे होवें जन दुखहीन । दिव्रत और अनर्थ दंडवत, व्रत भोगोपभोगपरिमाण। इनको धारण करें भन्यजन, मान शास्त्रको सुदृढ प्रमाण ॥
जिनव्रतोंके धारण करनेसे ऊपर लिखे मूलगुणोंकी वृद्धि हो उन्हें गुणव्रत कहते हैं। वे गुणव्रत, दिव्रत, अनर्थदंडव्रत, और भोगोपभोगपरिमाणके भेदसे तीन प्रकारके
दिग्वतका स्वरूप। अमुक नदी तक अमुक शैल तक, अमुक गांव तक जाऊंगा। दशो दिशामें अमुक कोससे, प्रागे पद न बढ़ाऊंगा.॥ ..