Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनघालवोधकजो स्थूल झूठ न तौ भाप बोले, और न दृमरेसे बुलबावे तथा ऐसा सत्य वचन भी न बोलै जिससे कि दूसरे को दुःख वा हानि हो, उसे सत्याणुव्रत कहते हैं और परकी निंदा करना. धरोहर हरलेना, मूठा लिखना, चुगली करना, और किसीकी गुप्त वातका प्रगट करदेना ये पांच इस सत्याणुव्रतके अतीचार हैं। ४८॥
सत्याणुव्रतमें व झूठ बोलने में प्रसिद्ध होनेवालोंका नाम । इस व्रतके पालन करनेसे, पूज्य शेठ धनदेव हुआ। नहिं पाल मिथ्या रत होकर, सत्यवोप त्यों दुखी मुआ॥ मिथ्यावाणी ऐसी ही है, सव जगको संकटदाई ॥ इसे हटाओ नहीं लडाओ, समझायो सबको भाई ॥ ४९ ॥ ___ इस सत्याणुव्रतको पूर्णतया पालनेसे धनदेव नामका शेठ पूजनीय हुवा है और सत्यघोष नामके ब्राह्मणने झूट बोलने में प्रसिद्ध होकर महान दुःख पाया है ॥४॥
अचार्याणुव्रत । गिरा पडा भूला रक्खा त्यों, विना दिया परका धनसार। लेना नही न देना परको, है अचौर्य इसके अतिचार ।। माल चौयका लेना, चौरी-ढंग बतलाना छल करना । माल मेलमें नापतौलमें, भंग राजविधिका करना।।५०.!!
गिरा हुवा, पड़ा हुवा, रखा हुवा, दूसरेका.धन वगेरह वस्तु ग्रहण न करना वा. उठाकर दूसरेको न देना सो प्रचौर्याणवत है, और चौरीका माल लेना, चौरीका उपाय