Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग। चताना, अधिक मूल्यकी वस्तुम बोडे मृल्यकी वस्तु मिला कर चला देना, तोल नापके वांट तराजू गज वगेरहमें न्यूनाधिक करना, और राजाकी पात्राका उल्लंघन करना ये पांच इस व्रतके अतीचार है ।। ५०।।
अचीवाणुव्रत और चोरीमें प्रसिद्ध होनेवालोंका नाम । इस व्रतको पालन करनेसे, वारिपेण जगमें भाया। नहीं पालनेसे दुख वादल, खूब तापसी पर छाया। जो मनुष्य इस व्रतको पालै, नहीं जगतमें क्यों भावै । क्यों नहिं उसकी शोभा छावै, क्यों न जगत सब जस गावै ।।
इस अचौर्याणुव्रतके पालन करने में वारिषेण नामका राजकुमार प्रसिद्ध हुवा और नहीं पालनेसे अर्यात चौरी करनेमें. एक वारसी निंदित हुवा है ।। ११ ॥
ब्रह्मचर्याणुवत। .. .. पापभीरु हो परदारासे, नहीं गमन जो करता है। .. तया औरको इस कुकर्ममें, कभी प्रवृत्त न करता है ।। ब्रह्मचर्य व्रत है यह सुंदर, पांच इसीके हैं अतीचार। इन्हें मली विध अपने जीमें, मित्रो लीजे खूब विचार॥५२॥ • भंडवचन कहना, निशिवासर, अतितृष्णा तियमें रखना। "व्यमिचारिणी स्त्रियोंमें जाना, औ अनंगक्रीडा करना। 'औरोंकी शादी करवाना, इन्हें छोडकर व्रत पाला । बणिकसुता नीलीने नीके, कोतवालने नहिं पाला॥५३॥