Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकमुनिमहाराज ध्यानस्थ बैठे थे, सो उनके शरीरकी वायुसे चा चंटाल निर्विष होकर जीवित होगया-और मुनिराजके चरणोंमें भक्तिपूर्वक नमस्कार करके अपने कल्याणार्य कुछ व्रत ग्रहण करनेकी इच्छा प्रगट की. मुनिमहाराजने उसकी हिंसोपजीविका सुनकर उससे कहा कि "तुम चतुर्दशीकै दिन जीवहिंसा करना त्याग दो" उसने पंद्रह दिनमें एकदिनका हिंसात्याग करना सहज समझकर दृहप्रतिज्ञा करली किप्राण जांय परंतु चतुर्दशी के दिन किसी जीवको न मारूंगा। ___ ठीक उसी समय अष्टाहिका पर्व या. सो महाबल गना ने "पाठ दिनतक कोई भी किसी जीवको न मारे" ऐसा दंढोरा शहरभरमें पिटवा दिया था. किंतु राजपुत्र वलकुमार मांसभीजी था. सो उससे बिना मांसके रहा नहिं गया, उसने राज्योपवनमें राजकीय मेंको मच्छन्नमारसे मारकर व पकाकर खाया । जब राजाने मेंढकी खोज कराई तो वागमालीके द्वारा ज्ञात हुआ कि राजपत्र ही इस अपराधका अपराधी है। "मेरा पुत्र ही मेरी आमाका खंडन करता है" इस वातपर राजाको बडा क्रोध हुआ. उसने तत्काल ही चंडालके द्वारा माया कटवानेका हुकुम दिवा. दैवयोगसे उस दिन चतुर्दशी थी और उसी यपाल चंडालको राजमारके बष करनेका हुकम हुआ. राजभृत्य (सिपाही) उसके घर बलानेको गये वो वह चंडाल अपने ग्रहण किये हुये अहिंसा बाकीरतार्य छिप गया और अपनी स्त्रीको सिखा दिया कि