Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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बालबोधक
उन उर्दिकी ऐसी प्रतिज्ञा सुन दिवाकर देव आदि विद्यारों का कि आप लोग समर्थ हैं
का
विद्यावर
भले प्रकार करा देनी चाहिये इतना सुनते ही चल दिये और उदासी (इन्द्र पानी ) का य मंग कर बड़े समारोहले उर्मिला निकलवाया। इप्रकारक विनयको देकर राजा पट्टरानी व अन्य जन हे चकित हुये और मन जिनको बार कर दिया !
इसलिये सबको चाहिये कि वज्रकुमार मुनिकी तरह की भावना करें जिससे दूसरों पर इस स धर्मका असर पडे और उसका माहात्म्य प्रकाशित हो, तया दूसरोंका व अपना कल्याण हो सके ।
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४३. श्रावकाचार पंचम भाग |
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पांच अलका स्वर !
हिंसा विध्या चौरी मैथुन और परिग्रह जो हैं यार ! स्यूत रूपसे इन्हें छोडना, कहा अत्रत प्रभुते आप || निरविचार इनको पालनकर पाते हैं मानव सुर तोक । वहां पुण अवविज्ञान त्यों, दिव्यदे मिलते हरशोक ॥
इसका अर्य स्यष्ट है इसलिये न लिखा ।
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