Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधक
पडा । चत्र क्या था ! वज्रकुमार को अपने गुरुके देखनेकी अभिलाषा हो उठी और बंधुओं सहित मथुराको क्षत्रिय-गुहा में जा पहुंचा । वहां सोमदत्तको दिवाकरदेवने नमस्कार करके पूर्व सर्व वृत्तांतको कह सुनाया । किंतु वज्रकुमारने अपने सब संबंधियोंको बडे कष्टसे घर लौटाकर स्वयमेव मुनिपद ग्रहण कर लिया। इसी बीचमें मथुरा के राजा 'पूतिगन्ध थे, उनकी रानीका नाम उर्मिला था, उसे धर्मसे बडा प्रेम था और हमेशा धर्मप्रभावना में लग्लीन रहा करती थी, वर्ष में तीन दफे नंदीश्वर पर्वको चडे समारोहसे किया करती थी और जिनेन्द्रदेवकी प्रभावनाके लिए, गजरय निकलवाया करती थी । उसी नगरी में सागरदत्त शेठ रहते थे, जिनकी स्त्रीका नाम समुद्रदत्ता और पुत्रीका नाम दरिद्रा था | सागरदत्तका मरण हो जाने पर दरिद्रा एक समय किसी के मकान में पडी हुई हड्डियों को चचोर ( चूस रही थी, इतनेमें आहारके वास्ते आए हुये दो सुनियोंने उसे देखा उनमें से छोटे सुनिने कहा, खेद है ! यह विचारी ऐसे तुच्छ पदार्थसे अपनी उदरपूर्ति कर रही है, बडे मुनिने अपने 'दिव्यज्ञान से उत्तर दिया - यह अभी दीन जान पड़ती है । परंतु यही यहां के राजाकी पट्टरानी होगी। सुनिने ये वचन - कहे ही थे कि उधर भिक्षाकेलिये घूमते हुए धर्मश्रीबंदक जो कि बौद्ध सन्यासी या उसने सुन लिये और यह निश्चय करके कि मुनिके वचन असत्य नहीं होते हैं, उस कन्याको ( दरिद्रा )