Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवाधकउसने वहांके सब वगीचोंको ढूंढ डाला, कहीं आम न मिला। केवल एक बगीचेमें आप वृक्ष के नीचे सुमित्राचार्य योग लगाये हुए ध्यान कर रहे थे, जिनके प्रतापसे उस आममें खूब फल लग रहे थे । सोमदत्तने अपना मनोरथ सफल देखकर उसमें से कुछ आप तोड लिए और एक मनुष्यके हाथ घर भेज दिये और आप स्वयमेव मुनिके पास धर्मश्रवण कर वैराग्यको प्राप्त होगए और तपको ग्रहणकर नानाप्रकार शास्त्र अध्ययन करके नाभिगिरि पर आतापम योगसे स्थिर होगा । उधर यज्ञदत्ताने पुत्रको जना और स्वामीका अपने वंधुनर्गसे वैराग्य सुनकर कुटुंव सहित वह नाभिगिरि पर गई और सोमदपको आतापन योगसे स्थित देख अत्यंत क्रोधकर बोली-इस बालककी, जिसका मूलबीज तू है, अपने आप रक्षा कर ऐना कहकर सोमभूतिके चरणोंमें बालकको रख दिया और गाली देती हुई आप घरको लौट आई । इतने में ही दिवाकर देव नामका विद्याधर जिसे उनके छोटे भाई पुरंधरने अमरावती नगरीके राज्यसे निकाल दिया था मय स्त्रीके वहां मुनिवंदनाको आया और वहां उस बालकको देखकर उठा लिया और अपनी स्त्रीको देकर . वज्रकुमार यह नाम रख दिया। थोडे दिनमें ही वज्रकुमारने अपने मामा विमलवाहन जो कि कनकगिरिके राजा
और दिवाकरदेवके साले थे, उनके यहां रहकर समस्त.. विद्या सीख ली और ऋमसे युवा अवस्थाको प्राप्त कर