Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालबोधक
बाधा शंका रोग शोक भय, जरा जहां है जरा नहीं । जिसमें विद्या सुख है अनुपप, जिसका क्षय है कभी नहीं ॥ ऐसा उत्तम निर्मलतर है, शिवपद अथवा मोक्ष महान । उसको पाते हैं अवश्य वे, जो जन सम्यग्दर्शनवान इसका अर्थ स्पष्ट है इसलिये नहि लिखा ।
है देवेंद्र चक्रकी महिमा, कही नहीं जो जाती है । सार्वभौमकी पदवीको सिर, महिपावली झुकाती है ॥ सवपद जिसके नीचे ऐसा, तीर्थकर पद है प्रियवर । पा इन सबको शिवपद पाते, भव्य भक्त प्रभुको भजकर ॥
सम्पष्टि भव्य इंद्रोंकी अपरिमित महिमा, अनेक राजाओंसे पूजनीय चक्रवर्ती पद और समस्न लोकको नीचे करने वाले तीर्थकर पदको पाकर मोक्षको जाता है ॥ ३६ ॥
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३४. रेवती रानीकी कथा ।
विजयार्द्ध पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें मेघकूट नामका नगर है वहां के राजा कुछ विद्यानोंके स्वामी चंद्रप्रभ अपने पुत्र चन्द्रशेखरको राज्य देकर दक्षिण मथुरा में जाकर गुप्ताचार्य मुनिके पास क्षुल्लक हो गये, एक समय बन्दना के लिए उत्तर मथुराको जाते हुए उनने ( चन्द्रप्रभ) गुप्ताचार्य से पूछा कि आपको कुछ खवर तो नहि कहना है । मुनिने कहा कि सुव्रत मुनि से वंदना और महारानी रेवतीसे आशीर्वाद कह