Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
तृतीय भाग।
१३५ है । सो नेत्रोंको प्रसन्न करनेवाले पदार्थोंका संग्रह अवश्य करना चाहिये अर्थात् घर दुकान बैठक भले प्रकार परिष्कार और सजाये रखना चाहिये । जिससे चारों तरफ नयनतृप्ति कर पदार्थ सदैव दृष्टिगोचर हैं । तथा वाहरमें जावै तौ वाग वगीचे में या सुंदर बाजारमें ठहरनेको जाना चाहिये । सुंदर २ छोटे २ बच्चोंका खेल देखना भी नयन पनको तुप्तिकर होता है परन्तु ऐसान हो कि दिन रात सुंदर पदार्थों के देखनेमें ही लवलीन हो जावो । यदि ऐसा करोगे तो तुम्हारा संयम धर्म नष्ट हो जायगा-संयमका नष्ट करना आत्मा का घात करना है इस कारण जब तुमारा चिच कारण विशेषसे घबडाकर सुंदर पदार्थोका अवलोकन करना चाहे उसी समय सुंदर पदार्थोंके लिये तत्पर होना चाहिये जब घंटे आध घंटे बाद चित्तमें शांति हो जाय तब अपने कर्चव्य में लग जाना चाहिये।
जिस प्रकार सुंदर पदार्थोका अवलोकन स्वास्थ्यकर है उसी प्रकार सुगंधित पदार्थोंका संघना, तथा जिह्वा मन तप्ति करनेवाले पदार्थोका भक्षण करना तथा सुंदर गीत नृत्य वादिन वा सुमिष्ट शब्दोंश सुनना भी स्वास्थ्यकर है परंतु अनावश्यकीय वा अधिकताके साथ इन विषयोंमें लवलीन हो जाना हानिकारक है । इस कारण जिस समय इन विषयोंको उपयोगमें लानेकी अत्यंत आवश्यकता हो उसी समय ग्रहण करना चाहिये । अर्थात् समय पर सुगं