Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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तृतीय भाग! दिया। उस दिन श्रावणशुक्ला पूर्णमासीका दिन या, सांत सौ मुनियोंकी रक्षा हुई, इसकारण देशभरकी प्रजाने पर स्पर रक्षाबंधन किया और उस दिनको पवित्र दिन मानकर प्रतिवर्ष रक्षाबंधन क्षीरभोजनादिसे इस पर्वको मानना शुरू किया | उसी दिनसे यह राखीपूर्णिमाका तिहवार चला है। अन्यमतियोंने विष्णुकुमारकी जगह विष्णु भगवान और बलि मंत्रीकी जगह सुग्रीवके भाई वलि राजाको मानकर मनगदंत कहानी बना ली है, सो मिथ्या है।
११. शारीरिक परिश्रम ।
7919 EECE यद्यपि परिश्रम विषयक वर्णन दूसरे भागके ६८वें 'पृष्ट, उनचालीसवें पाठमें लिखा गया है। उसमें शारीरिक परिश्रमकी आवश्यक्ता और लाभादि दिखाये गए हैं दयापि यावश्यक समझ योडामा विषय इस भागमें भी लिख देना उचित है।
शारीरिक परिश्रम करनेसे किस प्रकारका हितसाधन हो सकता है सो विचारना चाहिये कि-दमलोग शरीरके कितनेही मांसमय हिस्सोंकी सहायतासे चलते फिरते हैं, उन सब मांसमय हिस्सोंका नाम मांसपेशी है, सो नित्य नियमानुसार शारीरिक व्यवहार करनेसे वे सब मांसपेशिय