Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जैनवालवोधकमोटी और बलिष्ठ हो जाती हैं किसी लुहारके दहने हाथको देखोगे तो यह बात सिद्ध हो जायगी । इसी प्रकार मांस पेशियोंका नियमित व्यवहार न होनेसे वे सब मांसपेशियां पतली और कमजोर हो जाती हैं, सो किसी ऊर्ध्वबाहु तपसी सन्यासीका जो हाथ हमेशा ऊपर उठा हुवा होता है उस को देखनेसे भलेप्रकार निश्चय हो जायगा कि यह बात ठीक है। __ हमलोग स्थिर होते हैं तो हमारे मुख और नासिकासे प्रायः एक मिनिटमें सोलह वार श्वासोच्छ्वास होता है परंतु दौडनेके समय इससे बहुत अधिक म्वासोच्छास होता है जिससे श्वासयंत्रमें ( फेफडे में ) हवाका प्रवेश भी बहुत होता है। श्वास यंत्रमें इवाके अधिक प्रवेश होनेसे शरीरका रक्त (खून) अधिकताके साय परिष्कृत (साफ) होता है। दौडनेके समय हृदय पिंडमें भी अधिक स्पंदन (फड़: कना) होता है। इसी कारण शरीरके समस्त स्थानोंमें अधिकताके साथ रक्तका संचालन होता है, और उसके अधिक चलाचल होनेसे ही शरीरके समस्त अंगोंकी पुष्टि अधिक २ होती जाती है।
शारीरिक परिश्रम करते रहनेसे दूसरा लाभ यह होता है कि दौडनेसे अथवा किसी कार्यको अधिकताके साथ करनेसे शरीरमें पसीना निकल पाता है । वह पसीना अनेक दुषित पदार्थोका वाहक है जिससे शरीरके अनेक,