Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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'तृतीय भाग।
१४७ प्रारम्भ किया और उनको उस यज्ञमें जला देनेका प्रबंध किया। उनके निकट बकरे वगैरहों का हवन करके उसकी दुर्गधसे वडा कष्ट पहुंचाया यहां तक कि अनेक मुनियों के उस दुर्गधित धुएंसे गले फट गए और अनेक बेहोश हो गये । ___ इसी समयमें मिथिलापुरीके निकटके वनमें श्रुतसागर चंद्राचार्य महाराजने अद्धरात्रिके समय श्रवण नक्षत्रको कंपा. • यमान देखकर अवधिज्ञानसे विचारकर खेदके साथ कहाकि-'महामुनियोंको महान् उपसर्ग हो रहा है। उस समय पास बैठे पुष्पदन्त नामके विद्याधर क्षुल्लकने पूछा कि, भग वन् ! कहांपर किन २ मुनिमहाराजोंको उपस हो रहा है ? 'तव प्राचार्यमहाराजने हस्तिनापुरके बनमें अपनाचार्या दिके उपसर्गका समस्त वृत्तांत कहा । तुल्लक महाराजने पूछा कि-इस उपसर्गके दूर होनेका भी कोई उपाय है ! 'तव मुनि महाराजने अवधिज्ञानसे कहा कि, धरणीभूषण पर्वत पर विष्णुकुमार नामके युनि हैं । उनको विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हुई है। उनसे जाकर तुम प्रार्थना करो, तो वे इस उपसगको दूर कर सकते हैं। यह सुनते ही उस विद्याधर तुल्लकने तत्काल ही विष्णुकुमार मुनिके निकट जाकर -मुनिसंघके उपसर्गकी बात कही और यह भी कहा कि,आपको विक्रिया ऋद्धि है, आप समर्थ हैं । तर विष्णुकुमार मुनि महाराजने हाथ पंसार कर देखा, तो कोसों तक हाथ लंबा होता चला गया। तब उसी वक्त पद्म राजांके पास