Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
२४६
जैनघालवोधकउसने मुनिको मारनेके लिये हायमें तलवार उठाये हुए उन चारों मंत्रियों को जहां तहां कीन दिये अर्याद वे चारों पत्थर जैसे हो गये और मुनिको नहिं मार सके । प्रातःकाल ही यह वृत्तांत राजाने सुना, तो उसने उन चारोंका काला मुंह करके और गधेपर सवार राके देशसे निकाल दिया।
वे चारों मंत्री कुरुजांगल देशमें हस्तिनापुर नगरके राजा पझसे जाकर मिले और उसके मंत्री हो गए । उस समय उस नगर पर कुंभपुरका राजा सिंहबल चढ आया था सो उन चारों से वलि नामक मंत्री आनी चतुराईसे उस सिंहवल राजाको हराकर पकड लाया, तब पराजाने खुश होकर वलिको मनवांछित वर मांगने का वचन दिया। बलि मंत्रीने कहा कि, मेरा वर इस समय जमा रहै, जब मुझे आवश्यकता होगी तब याचना करूंगा।राजाने 'तथास्तु' कहकर स्वीकार किया। .. इसके पश्चात् कुछ दिनों में वे ही अकम्पनाचार्य अपने सातसौ मुनियोंके संघपहित हस्तिनापुरके वनमें पाये, तब बलिने यह बात जानकर उन मुनियों को मारनेकी इच्छासे राजासे अपना वह पुराना कर मांगा कि, मुझे सात दिनका रान दीजिये । राजा पा सात दिनके लिये बलिको राजा बनाकर आप अपने राजमहलों में रहने लगा। - बलिने आतापंन नामक पर्वत पर कायोत्सर्ग ध्यान करते हुए मुनियों को मारनेके लिये वहीं पर नरमेध यज्ञका