Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
१४१
तृतीय भाग ज्ञाता पुरुषोंने सम्पाज्ञान कहा है। इस सम्यग्ज्ञानको प्राप्त करानेवाले प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्या-. नुयोग ये चार अनुयोग हैं ।। ६७ ।।
. प्रथमानुयोगका लक्षण । धर्म अर्थ औ काम मोक्षका, जिसमें किया जाय वर्णन । पुण्य कथा हो चरित गीत हो, हो पुराणका पूर्ण कयन । रत्नत्रय औ धर्म ध्यानका, जो अनुपम हो महा निधान । कहलाता प्रथमानुयोग है, यों कहता है सम्यग्ज्ञान ॥३८॥
जिसमें वेसठि शलाका पुरुषोंमेंसे किसी एककी पुण्यमय चरित कथा हो, और धर्म अर्थ काम मोक्षका वर्णन हो, तथा रत्नत्रय धर्म ध्यानका अनुपम खजाना हो उसे प्रथमानुयोग कहते हैं ।। ३८॥
करणानुयोगका लक्षणः लोकालोक विभाग वतावे, युग परिवर्तन वतलाता। . वैसे ही चारों गतियोंको, दपण सप है दिखलाता ।। है उत्तम करणानुयोग यह, कहता है यो सम्यग्ज्ञान । इसे जाननेसे मानव कुल, हो जाता है वहुत सुनान ॥३९॥
जो अलोकालोकका विभाग, युगोंका परिवर्चन और चारों गतियोंका वर्णन दर्पणकी समान दिखलाता है उसको करणानुयोग कहते हैं ।। ३९ ॥ . ..